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"मैं हताशा को जानता था, आदमी को नही" 6 Feb 2018


"मैं हताशा को जानता था, आदमी को नही"
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दरअसल में यह एक खीज है जो अपढ़ लोग पढ़े लिखे और योग्य लोगों के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे है। इसे एक षड्यंत्र के रूप में देखें जिसमे चाय बनाने वाली इमेज को एक विश्व विख्यात अर्थ शास्त्री के खिलाफ और अँग्रेजी बोलने लिखने और बाहर पढ़कर आने वाले महात्मा गांधी, नेहरू, राजीव गांधी, इटली से बहू बनकर आई सोनिया गांधी और राहुल गांधी को एक मजाक बनाकर चाय बनाने वाले की इमेज को पुख्ता किया गया।
जिस तरह से इस व्यवस्था और इनकी आई टी सेल ने दुष्प्रचार किया वह बेहद गलीज़ और अभद्र था कम से कम पार्टी प्रमुख और प्रधान मंत्री की गरिमा के अनुकूल तो नही था। भारत जैसे देश के मुखिया की छबि को चाय वाला बनाकर दुनिया मे परोसना भी एक तरह का निवेश लाने का ही कदम था और इसके लिए अगर आप मोदी के पहले दो साल देखें तो वे देश छोड़ विदेश में ही रहें और सूचना के अधिकार कानून की धज्जियां उड़ाकर सरकार उनसे संबंधित सारी जानकारियां छुपाती रही शिक्षा की बात हो या किसी स्टेशन पर चाय बेचने की- इतने विशाल देश में एक व्यक्ति नही मिला जो इस बात का गवाह हो।
फिर तीन साल के अंत में जब गुब्बारे फूटने लगें और लोगों ने 15 लाख से लेकर रोज़गार, महंगाई, नोटबन्दी, जी एस टी से लेकर सैनिकों की मौत के मुद्दों पर जवाब मांगे , ईवीएम की धांधलियों से लेकर गोरखपुर में बच्चों की मौत का हिसाब मांगा तो जाहिर है भाजपा और संघ में बौखलाहट थी। तीन साल में मोदी ने मीडिया को कभी फेस नही किया बल्कि खरीदकर विदेशियों का रूपया उजाड़ने वाले खेल , बुलेट ट्रेन के मुंगेरीलाल वाले सपने दिखाने के लिये ही मीडिया का बेजा इस्तेमाल किया।
आखिर में जब कुछ भी नही बचा, सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों ने न्याय पर सवाल किए और मुख्य न्यायाधीश के पूर्वाग्रह और सरकार का आदमी बन फैसले लेने पर खुलकर सामने आए और जस्टिस लोया की मौत ने सुगबुगाहट से ढलती सर्दी के मौसम में गर्मी ला दी तो सुधीर चौधरी जैसे घटिया और उजबक पत्रकार को साक्षात्कार दिया जो पूर्ण रूपेण स्क्रिप्टेड था और दुनिया के इतिहास का निकृष्टम साक्षात्कार ।
विदेशी निवेश लाने के नाम पर हर वर्ष गुजरात से शुरू कर मप्र और तमाम राज्यों में जो गत 15 वर्षों में इन्वेस्टर मीट हुई या नौटन्की, स्टार्ट अप से लेकर विनिवेश और युवाओं के लिए जो ऋण का हवाई किला खड़ा किया गया वह भी ध्वस्त हो गया। संडास बनाने में भी फेल हो गए कूड़ा कचरा इकठ्ठा करने के नाम पर सौ शहरों में स्थानीय व्यापारियों और अपने लोगों को स्मार्ट सिटी के नाम पर लॉलीपॉप दिए गए और अरबों रुपये की बर्बादी कर दी - बगैर पानी का इंतज़ाम किये संडास के ढाँचे बनाकर लोगों की मजार बना दी।
फिर एक भयानक मजाक किया और कहा कि पकौड़े बनाना भी रोजगार है । निश्चित है और बेहद सम्मानजनक है। इसमें कोई शर्म की बात नही, यह एक गिरा हुआ काम बताना भी लोगों की गलत व्याख्या है जैसे विरोध में लोग पोलिश करते है या झाड़ू लगाते है तो क्या पेशा खराब है पर एक वैज्ञानिक समय मे और डिजिटल प्रमोशन के समय मे पकौड़े का विकल्प देना मानसिक दिवालियापन है। यह सुधीर चौधरी , रोहित सरदाना या रजत शर्मा जैसे मूर्ख पत्रकारों का रविश कुमार को दिया एक जवाब भी है जिसे बड़ी शातिरी से रचा और बुना गया है। क्योंकि रविश लगातार शिक्षा के गिरते स्तर, नौकरी के मुद्दे उठाकर जागृति फैला रहे है।
आज अमित शाह ने राष्ट्रपति ( ??? ) के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए मोदी और सुधीर जैसे लोगों के विकल्पहीनता अर्थात पकौड़ों की मजबूरी पर टिप्पणी करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी, संगठित, अनुशासित और सांस्कृतिक पार्टी के घुटने टेक देने की बात कही है। आज का दिन याद रखा जाना चाहिए इस मामले में कि ये पार्टी बजट के बहाने देश को बरगला रही है, झूठ के आंकड़ें पेश कर रही है लोकतंत्र के सर्वोच्च मन्दिर में और देश के पढ़े लिखे युवाओं को रोजगार देने के बजाय ठुल्ला दिखा रही है और इन्ही मुद्दों पर जब युवाओं ने सवाल उठाये तो उन्हें देश द्रोही कहकर उनके विवि में टैंक रखवाने की धौंस दी जा रही है। मप्र से लेकर उत्तर पूर्व तक असन्तोष है बस इनके पास घुटने टेकने के अलावा कुछ नही बचा, आज अमित शाह ने यह घोषणा कर दी।
कल 4 युवा मारे आपके समधी ने जिसकी अम्मा को शॉल भेजी थी और जिसकी बिरियानी खाने 3 साल में दस बार चले गए आप। नींद आ जाती है आपको, कसम से मैं सोया नही सारी रात !
अब तो महबूबा के साथ सरकार है आपकी, बाकी सब छोड़ो ये बताओ कश्मीरी पंडितों को बसाने का मुद्दा उठा नही रहें , अभी तक 3.5 साल में तो सबको बसाकर व्यवस्थित कर देना था। ये तो सॉफ्ट मुद्दा है और कुछ करना नही है आपको !
क्यो नही बात करते कश्मीरी पंडितों की अब या महबूबा का दबाव है ? अफजल गुरु की रिश्तेदार से कैसा याराना निभा रहे है। इसी कश्मीर में रोज जवान मार रहा है पाकिस्तान फिर क्यों नही दस सिर मार रहे ? संघ भी ध्यान नही दे रहा -भागवत जी के मुख से तीन साल में एक बार भी पंडित का प नही निकला , क्यों ?
बोलती क्यों बन्द है सरकार - 370 हटाओ नेहरू को खूब गालियां दी है, अब तो आप ही आप हो, हिम्मत करो। 26 जनवरी पर लाल चौक चले जाते - आडवाणी जी मे ये हिम्मत थी - उम्रदराज होकर भी शेर थे, अटल जी के मुरीद इसलिए है लोग कि कर्णसिंह और शेख अब्दुल्ला को घास नही डाली कभी और आप तो महबूबा से दोस्ती निभा बैठे हो जो सेना पर रोज FIR कर रही है। गजब की समझ है
क्या सम्हाल रहे है मालिक - बेरोजगारी, विदेश नीति, शौचालय, स्मार्ट सिटी, 370, 377, दीपक मिश्रा, जस्टिस लोया हत्याकांड, शिक्षा, स्वास्थ्य, विदेशी निवेश, बाबा रामदेव, अम्बानी अडानी, राज्यों में बढ़ती हार , पार्टी के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक, कश्मीर, गुजरात, उत्तर पूर्व, कर्नाटक , जी एस टी , नोटबन्दी के दुष्परिणाम, योगी, शिवराज, वसुंधरा, रमणसिंह, यशवंत सिन्हा, गोरखपुर, किम जोंग, अहमदाबाद के झूले, साबरमती आश्रम, गोडसे की कहानी, दस लाख के सूट, सुधीर चौधरी, 600 करोड़ मतदाता, कर्नाटक जैसे छोटे से राज्य में 7 लाख गांव या देश ? आपकी बौखलाहट और गैर अकादमिक क्षमता से हमदर्दी है माई बाप !!!
कल घुटने टेक ही दिए न आपकी पार्टी ने यह कहकर कि पकौड़ा पुराण ही शाश्वत सत्य है और यही वर्तमान और भविष्य है। चुनाव तो जीत जाओगे 2019 में पर 2024 तक अपने लोगों को क्या दोगे - बाबाजी का घँटा ?
कभी आईना देखते हो बाबा ?
अरे हाँ काशी कब से नही गए हो अपने इलाके में ?
शर्मनाक मगर सत्य है !

(शीर्षक पंक्ति - विनोद कुमार शुक्ल की कविता से) 

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