Skip to main content

Posts of 10 to 20 July 2017



जी मैं दलित हूँ - उसने कहा था घर मे घुसते ही।
ओह वाओ, ग्रेट ! पर एक बात बताओ मित्र - कौन से दलित -मैंने वहॉ टोक दिया उसे .......
मायावती वाले, 
कांशीराम वाले
चन्द्रशेखर वाले
जगजीवनराम वाले
मीरा कुमार वाले 
अम्बेडकर वाले
ज्योतिबावाले
मार्क्स वादी
लेनिनवादी
स्तालिनवादी

नौकरी के लिए 
प्रवेश के लिए 
प्रमोशन के लिए 
फेलोशिप लेकर हवाई जहाज में उड़ने वाले 
अधिकारी बनकर सरनेम बदलने वाले 
लोन लेकर हड़पने वाले 
सरकारी योजनाओं को भकोसने वाले
सबसीडी डकारने वाले

वोट बैंक वाले 
ऊना वाले 
बुद्धिजीवी वाले 
जे एन यू वाले 
रोहित वेमुला वाले 
फेसबुकिये शेर जो ब्राह्मणों को कोसते है दिनभर
साहित्य में दिन रात दलित विमर्श वाले 
विश्व विद्यालयों में सिर्फ बकर कर मोटी तनख्वाह वाले 
एनजीओ टाईप कोरी भावुकता वाले 
लेख, शोध और पर्चे लिखने वाले 
महिला जेंडर और शोषण के वेब पोर्टल और पत्रिका वाले 
सीवर से लेकर मैला ढोने वाले या मुआवजा चखने वाले

ओमप्रकाश वाल्मीकि वाले
दया पवार वाले
शरण कुमार लिम्बाले वाले
राजेन्द्र यादव वाले
तुलसीराम वाले
धर्मपाल वाले
या इन सबकी चटपटी भेल हो

कांग्रेस वाले
भाजपा वाले 
सपा वाले 
दक्षिण भारतीय 
नार्थ ईस्ट वाले

देशप्रेमी या विधर्मी
हिन्दू दलित 
मुस्लिम दलित
धर्मानान्तरण से ईसाई बने 
मन्दिर प्रवेश को लालायित 
बौद्ध धर्म अपनाने को आतुर

भाई साहब थोड़ा स्पष्ट कर दें आप कौनसे दलित है ताकि मैं आपसे यथायोग्य बातचीत करने के लिए अंदर जाकर मुखौटा लगा लूँ और बचूं साफ और ईमानदारी पूर्ण बात करने से ताकि कल मैं मेन स्ट्रीम में बना रहूं ।
अब क्या है ना देश के सर्वोच्च पद पर भी जाति से ही निर्णय और चुनाव की प्रक्रिया हुई । दूसरा महत्वपूर्ण पद भी अन्य पिछड़ा वर्ग से आता है । बाकी आप जैसा कहेंगे देख लेंगे !!!
बैठिए क्या लेंगे चाय, कॉफ़ी, नीम्बू पानी या कुछ बियर वाईन !!!

20/07/2017


अमेरिकन मालवी छोरी से मुलाक़ात हुई पिछले दिनों। यहां आई हुई थी , खूब बात की और खूब गिटिर पिटिर की अँग्रेजी में। मजा आ गया भिया।
म्हारी छोरी है या , तमारे नी मालम तो बतई दूं हूँ। इके तो हरो कारड भी मिली ग्यो वां को ।
अब वो अमेरिका में ठिकाना बना के रह रही है , की री थी कि गंज रुपया लगाया है और खूब बड़ो बंगलो बनायो है। और कह रही थी कि उधरईच एक मालवा बनाएगी और दाल बाटी और सेव का अड्डा !!!
सबको वही बुलाया बोली - या आओ तो टैम नी मिलें दां !!! उसका लाडा वई काम करें और नानी जिको नाम मीठी है अब 6 वीं में आ गई जो अब या आने में भी नखरा करें घणा - तो छाया बोली अब मिलणो हो तो वईज़ आवजो दाल बाटी बनाई के खिलाई दुआं अने सेव पोया भी लिम्बू डाली के !!! पण जिलेबी तमारे लेके आणि पड़ेगी, वां ऊना अमेरिकन मारवाड़ी हून के जिलेबी बनाता नी आये !
देवास की है या नानी और इको लाडो शाजापुर को पर गंज बरस हुई ग्या दोई जना अमेरिका में जई के बसी ग्या एने छोरी भी हुई गी अबे मीठी छटवीं भने अमेरिका में। अच्छो है सब सुख से रें तो कई बुरौ,म्हारो तो इत्तो केणो कि आता जाता रिवजो और सम्बन्ध बनाय रखजो , समिचार मिलता रें -योज़ भोत है म्हारा जैसा बूढ़ा मनक के।
हो बाई - म्हणे भी की , नी अई गयो म्हारे घरे -अपनी झोपड़ी में, अबे अमेरिका जाने का पैसा कोई कम लगे कई, ओ दादा अपनो देवास ईच भलो। सूखी बाटी खई लांगा याज, वा जदे रेवा दें तू तो बैन
Image may contain: 2 people, people smiling, people sitting and indoor

उन्होंने पूछा आपके घर सत्यनारायण की कथा है ?
मैंने कहा हां जी इस माह की 30 तारीख को है।
उन्होंने कहा तो क्या शर्मा जी, पांडे जी, अवस्थी जी सभी आएंगे ?
मैंने कहा शर्मा, वर्मा, पालीवाल, चौहान , मालवीय , हुजूर, कूजूर, गौर , जैन , अरोरा , माइकल , जॉर्ज, यूनुस,अफजल और शकील रहमान आदि भी सब आएंगे।
उन्होंने कहा क्या प्रसाद भी बंटेगा ?
मैंने कहा जी , भोजन भी रखा है - जाते समय मेहमानों और आमंत्रितों को दक्षिणा और धोती - कुर्ता और एक एक तांबे का लोटा देने का भी प्रावधान है।
उन्होंने फिर पूछा तो क्या पक्के में सतनारायण की कथा होगी?
मैंने कहा जी बिल्कुल होगी।
वह अपेक्षा से देख रहे थे कि मैं प्रसादी लेने के लिए बुला लूँ पर मैं भी चालाक हूं उनकी मंशा समझता हूं । मैंने टाल दिया छोड़िए जी आजकल कहां समय है , और आप तो व्यस्त रहते है , हमें तो पक्के से कथा करना ही है और फिर अब करना है तो करना है, घर का भी एक बजट है उसे भी खत्म करना है !!!
चलिए मिलेंगे फिर कभी यह कर कर मैं उन्हें औचक सा छोड़कर लौट आया ।
(कुछ लोग जबरन ही झिलवाते है और यही तरीका है कि उन्हें निगलेक्ट किया जाये)

ये है चेरी
हमारे घर की होने वाली पहरेदार अभी एक साल की हुई है , घर मे रहकर खूब भूंकती है और ख़ूब खाती है। चूंकि लेब्राडोर प्रजाति की है इसलिए सोशल भी बहुत है। घर के लोगों से छोड़कर - बाहर मुहल्ले भर के लोगों से अच्छी दोस्ती है इसकी।
घर के लोग तो सिर्फ खाने पीने के समय याद आते है इसे। जब नई नई थी मतलब जब जन्म के बाद लाया था तो बहुत मासूम और प्यारी थी पर अब जैसे जैसे बड़ी हो रही है इसका सोशल नेटवर्क बड़ा हो रहा है और खूब खाने को लगता है - चटक मटक, सिर्फ दूध - रोटियों से काम नही चलता। अब रात को भी भयानक भूंकती है।
पिछली कुछ रातों से मैंने इसे बाहर बांधना शुरू कर दिया है। हालांकि चिल्लाती है खूब और रात में चीखती भी है पर अब परवाह नही करता बल्कि खुश हूं कि अब यह बिल्कुल कुत्तों की तरह ही चिल्लाने और भूँकने लगी है। घर मे लेता भी नही और चिंता भी नही करता।
डरता भी नही मैं अब - इसके चीखने से , क्योकि मैं जानता हूँ कि कुत्तों का काम ही भूंकना है और कुत्ते घर के बाहर ही अच्छे लगते है। बहरहाल, अब एक बोर्ड लगवाना है घर कि
"कुत्ते से सावधान"
Image may contain: dog

अभी एक ऑटो में था और कल मित्र के साथ ओला में। शहर का नाम कुछ भी रख दें और वाहन चालक का भी चाँदभाई या देवीलाल।
दोनो हैरान थे और परेशान। कह रहे थे इस मुल्क की फिजाँ को क्या हो गया है। धर्म को घर क्यों नही रखते लोग, कमाए खाएं मेहनत मजदूरी करें या ये सब देखते रहें।
देवीलाल ने कहा कि मंदिर मस्जिद और गिरजाघरो में टैक्स लगा दो जी एस टी , आने जाने का और भजन पूजन का नमाज का और प्रार्थनाओं के लिए जब इंसान को नगदी देना पड़ेगा तो सब भूल जाएंगे। बालाघाट के देवीलाल ओला चलाते है, मेरे जिद करने पर भी फोटो नही लेने दिया।
चाँदभाई बुजुर्ग है और भोपाल के है, कबाड़खाना में रहते है। जब ऑटो किया तो चाय पी रहे थे, तसल्ली से चाय पीकर ग्लास धोया और ऑटो के ड्रावर में रख लिया, मैंने पूछा ये क्या तो बोले अब हमें कांच के ग्लास में चाय जानबूझकर नही दी जाती। क्यों , पूछने पर बोले मुलुक की हवा बदल गई है, बचे दिन ठीक से निकल जाएं यही बहुत है।
ये किस भोपाल में था। हम कहां आ गए है। लोग बहुत समझदार और साफ बात करने लगे है यह सबसे बड़ी तसल्ली है। देवीलाल ने कहा था कल - इंतज़ार करिये साहब , सिकन्दर और अशोक की भी जागीर खत्म हो गई तो हम तो खुद निज़ाम चुनते है। और दो पांच साल !!!
और आज चांदभाई गुनगुना रहे थे थोड़ी उदासी और थोड़े जोश में ----
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा , 
तू यहां मुसाफिर है , ये सराय पानी है
चार दिन की मेहमां तेरी जिंदगानी है !!!

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही