Skip to main content

Jantar mantar BhimSena and Zee News & Sudhir Choudhary



जंतर मंतर दिल्ली पर जो योगी के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है , हो सकता है वह सही हो - न्याय पाने के लिए सब कुछ किया ही जाना चाहिए , पर फिर वही सवाल है मेरा जो मैंने तमिलनाडु के किसान आंदोलन के समय किया था कि मित्रों लखनऊ जाओ ना दिल्ली में क्यों। यहां सिर्फ एक तमाशा बनकर रह जाओगे और होना जाना कुछ नही है।
दूसरा देश मे इतनी सेनाएं बन चुकी है कि अब किसी मे भरोसा नही रहा - ना हमें , ना दलितों को और ना आदिवासियों को - तो ये नया प्रपंच क्यों। आश्चर्य यह है कि अभी दो माह ही हुए है उप्र में चुनाव को, थोड़ा पहले चेतना जगा लेते तो शायद सत्ता में होते क्योकि जिस अंदाज में बौद्धिक और ज्ञान की बातें हो रही है -कम से कम सोशल मीडिया पर इस सेना के पैरोकार तो महानतम बता रहे है, यह बात थोड़ी पहले करनी थी।
वैसे यह बता दूँ कि स्व कांशीराम की पार्टी लाख प्रयास करने के बाद भी 20 सीट्स के आगे कम से कम उप्र में तो बढ़ नही पाई है बाकि चार राज्यों में तो बात मत करो जी, और मुआफ कीजिये दलितों और मुसलमानों ने ही ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देते हुए प्रचंड बहुमत दिया तो कुल मिलाकर कहना यह है कि यह जो "सनस्क्रटाइजेशन" की चाह में जो कुछ भी नया गढ़ने की और पाने की व्यूह रचना हो रही है वह बूमरेंग ना हो जाये।
तीसरा जिस अंदाज में कुछ तथाकथित छद्म पत्रकार IIMC में हवन कांड के बाद सामने आए है उसी तरह इस सेना के बहाने हमने कुछ और पढ़े लिखे सुगठित और सुज्ञानियों को फिर से नए काँधे तलाशते देखा है। सहारनपुर या दलितों के ऊना आंदोलन की राख में बाटियाँ सेंककर खाते हुए इसलिए आप तो ज्ञान बघारो ही मत।
खैर , गलियाते रहिये ब्राह्मण, अम्बेडकर, बुद्ध को - कौन फिक्र करता है, कमजोर जातियों को नास्तिक नही बना सकते यह भी तर्क प्रभावशाली है, फेसबुक पर मित्र लोग दलितों को बौद्ध धर्म मे ले जाने को प्रेरित कर रहे है- कितने दलित या आदिवासी फेसबुक पर है ? मुझे लगता है इस देश मे अब किसी को भी नया वैचारिक आधार बनाने के लिए एक शतक का इंतज़ार करना पड़ेगा, जिस अंदाज में आम लोगों ने और 85 % दलितों और पिछड़े, अल्पसंख्यकों ने जिस विचारधारा, संस्कृति और बाजारवाद की चकाचौन्ध में अपना देश और भाग्य कर्णधारों और फासीवादी ताकतों को सौंप दिया है उससे लड़ने के लिए हजार साल का शोषण, सदियों की पीड़ा नही - व्यापक तैयारी और बड़ा कैडर चाहिए जो अभी किसी तुर्रे खां के पास नही। आपके कबीर, रैदास और अम्बेडकर को सहेजकर सम्भाल कर रख लीजिए बाकी बुद्ध से लेकर और सबको तो उन्होंने अपना लिया है घर घर गणेश और हनुमानजी की मूरत पहुंच गई है और आपके लोग अभी भी मंदिर में प्रवेश के लिए लालायित है उन्हें तो समझा दीजिये पहले !!! शिक्षा, स्वास्थ्य या कुपोषण जैसे मुद्दों से लड़ने की ताकत जुटाइये, आजीविका सुनिश्चित करवाइये इनकी क्योकि दिमाग़ का रास्ता पेट से जाता है, आप तो बड़े पदों और बड़े विश्व विद्यालयों में पीठिकाओं पर विराजित है माह में पन्द्रह दिन सरकारी खर्च से विदेश घूम आते है पर इनका क्या, एक प्याज को तरस रहे है लोग !!!
जब बड़े जनाधार वाली कांग्रेस, सपा, तृणमूल, दक्षिण की पार्टियां या चवन्नी बराबर वामपंथियों का अस्तित्व मिट गया तो चालीस पचास हजार की भीड़ का क्या और कौन पूछता है इनके इस रविवारीय मनोरंजन को ? इसका नोटिस मीडिया ने नही लिया यह कहना है पर मीडिया इतना भी बेवकूफ नही जितना आपको लगता है और फेसबुक मीडिया भी नही कि आप अलग अलग कोनों से फोटोज चेंपकर अपने सबूत रखें। बहरहाल , इब्ने मरियम हुआ करें कोई !!!
थोड़ा तीखा जरूर लगेगा और ज्ञानी यहां तर्क लेकर आएंगे कोसते हुए पर एक बार पढ़कर आत्म मंथन करना प्रभु फिर भिड़ने आना।


*****

जंतर मंतर दिल्ली पर जो योगी के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है , हो सकता है वह सही हो - न्याय पाने के लिए सब कुछ किया ही जाना चाहिए , पर फिर वही सवाल है मेरा जो मैंने तमिलनाडु के किसान आंदोलन के समय किया था कि मित्रों लखनऊ जाओ ना दिल्ली में क्यों। यहां सिर्फ एक तमाशा बनकर रह जाओगे और होना जाना कुछ नही है।
दूसरा देश मे इतनी सेनाएं बन चुकी है कि अब किसी मे भरोसा नही रहा - ना हमें , ना दलितों को और ना आदिवासियों को - तो ये नया प्रपंच क्यों। आश्चर्य यह है कि अभी दो माह ही हुए है उप्र में चुनाव को, थोड़ा पहले चेतना जगा लेते तो शायद सत्ता में होते क्योकि जिस अंदाज में बौद्धिक और ज्ञान की बातें हो रही है -कम से कम सोशल मीडिया पर इस सेना के पैरोकार तो महानतम बता रहे है, यह बात थोड़ी पहले करनी थी।
वैसे यह बता दूँ कि स्व कांशीराम की पार्टी लाख प्रयास करने के बाद भी 20 सीट्स के आगे कम से कम उप्र में तो बढ़ नही पाई है बाकि चार राज्यों में तो बात मत करो जी, और मुआफ कीजिये दलितों और मुसलमानों ने ही ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देते हुए प्रचंड बहुमत दिया तो कुल मिलाकर कहना यह है कि यह जो "सनस्क्रटाइजेशन" की चाह में जो कुछ भी नया गढ़ने की और पाने की व्यूह रचना हो रही है वह बूमरेंग ना हो जाये।
तीसरा जिस अंदाज में कुछ तथाकथित छद्म पत्रकार IIMC में हवन कांड के बाद सामने आए है उसी तरह इस सेना के बहाने हमने कुछ और पढ़े लिखे सुगठित और सुज्ञानियों को फिर से नए काँधे तलाशते देखा है। सहारनपुर या दलितों के ऊना आंदोलन की राख में बाटियाँ सेंककर खाते हुए इसलिए आप तो ज्ञान बघारो ही मत।
खैर , गलियाते रहिये ब्राह्मण, अम्बेडकर, बुद्ध को - कौन फिक्र करता है, कमजोर जातियों को नास्तिक नही बना सकते यह भी तर्क प्रभावशाली है, फेसबुक पर मित्र लोग दलितों को बौद्ध धर्म मे ले जाने को प्रेरित कर रहे है- कितने दलित या आदिवासी फेसबुक पर है ? मुझे लगता है इस देश मे अब किसी को भी नया वैचारिक आधार बनाने के लिए एक शतक का इंतज़ार करना पड़ेगा, जिस अंदाज में आम लोगों ने और 85 % दलितों और पिछड़े, अल्पसंख्यकों ने जिस विचारधारा, संस्कृति और बाजारवाद की चकाचौन्ध में अपना देश और भाग्य कर्णधारों और फासीवादी ताकतों को सौंप दिया है उससे लड़ने के लिए हजार साल का शोषण, सदियों की पीड़ा नही - व्यापक तैयारी और बड़ा कैडर चाहिए जो अभी किसी तुर्रे खां के पास नही। आपके कबीर, रैदास और अम्बेडकर को सहेजकर सम्भाल कर रख लीजिए बाकी बुद्ध से लेकर और सबको तो उन्होंने अपना लिया है घर घर गणेश और हनुमानजी की मूरत पहुंच गई है और आपके लोग अभी भी मंदिर में प्रवेश के लिए लालायित है उन्हें तो समझा दीजिये पहले !!! शिक्षा, स्वास्थ्य या कुपोषण जैसे मुद्दों से लड़ने की ताकत जुटाइये, आजीविका सुनिश्चित करवाइये इनकी क्योकि दिमाग़ का रास्ता पेट से जाता है, आप तो बड़े पदों और बड़े विश्व विद्यालयों में पीठिकाओं पर विराजित है माह में पन्द्रह दिन सरकारी खर्च से विदेश घूम आते है पर इनका क्या, एक प्याज को तरस रहे है लोग !!!
जब बड़े जनाधार वाली कांग्रेस, सपा, तृणमूल, दक्षिण की पार्टियां या चवन्नी बराबर वामपंथियों का अस्तित्व मिट गया तो चालीस पचास हजार की भीड़ का क्या और कौन पूछता है इनके इस रविवारीय मनोरंजन को ? इसका नोटिस मीडिया ने नही लिया यह कहना है पर मीडिया इतना भी बेवकूफ नही जितना आपको लगता है और फेसबुक मीडिया भी नही कि आप अलग अलग कोनों से फोटोज चेंपकर अपने सबूत रखें। बहरहाल , इब्ने मरियम हुआ करें कोई !!!
थोड़ा तीखा जरूर लगेगा और ज्ञानी यहां तर्क लेकर आएंगे कोसते हुए पर एक बार पढ़कर आत्म मंथन करना प्रभु फिर भिड़ने आना।

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही