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Showing posts from August, 2016

NH-12 & other one Poem, Umber and Tarun Sagar in Assembly Posts of Aug 16 last week.

कविता की जमीन पर एक नया विमर्श, भाषा, विन्यास और कल्पना के साथ बेहद संजीदा किस्म की कविता लेकर आते है  Umber R. Pande . इधर कविता को लेकर थोड़ी सी समझ विकसित करने की कोशिश कर रहा हूँ, सफर में नामवर जी की किताब नई कविता के प्रतिमान रख ली थी जिससे दृष्टि साफ़ हो सके क्योकि उस दिन देवताले जी और मदन कश्यप जी से बात करते बदलते शिल्प और समझ को लेकर काफ़ी बात हुई थी। अगर उन्ही प्रतिमानों और खत्म होती जा रही कविता की बात करें तो यह अनुष्ठान अब नए सिरे से सृजित करना होगा और सब पुराने क ो लाल दफ़्ती में बांधकर मैले कुचैले कोनों में रखकर किसी शोधार्थी को कभी काम आ सके , उस भर लायक रखकर कवियों के साथ ही विलोपित कर देना होगा। क्योकि बात शमशेर, मुक्तिबोध से शुरू होकर अम्बुज, राजेश जोशी से होते हुए एकदम विचारधारा में जकड़े और पैठे हुओं के बीच खत्म हो जाती है पर अब समय है  Anuj Lugun  से लेकर  Jacinta Kerketta   Aditya Shukla  और अम्बर का और हमें यह स्वीकारना ही होगा और अब अगर "सबसे नई कविता के प्रतिमान" या पैमाने खोजने या बनाने है तो इनकी भाषा में रचा जा रहा सब कुछ समझना होगा फिर वो गद्य ह

Posts of 10 to 19 Aug 16

सूरज निकला फिर सुबह हुई शाम ढली, अन्धेरा हुआ , इस तरह से नए नवेले कमरे में रात हुई चींटियां आई, फिर छिपकली चूहे आये और इस तरह से नए नवेले कमरे में संसार आया भरी धूप में पतरे तपे हवाओं के साथ धूल आई, इस तरह से   नए नवेले कमरे में पसीना निकला पहली बरसात में छत टपकी दीवारों में सीलन आई, इस तरह से नए नवेले कमरे में दुःख आया अब इंतज़ार है ठंड का कांपने और गर्माहट का, इस तरह से   नए नवेले कमरे में जीवन का - संदीप नाईक   17 अगस्त 16 एक बरसाती शाम को गर्मी महसूस करते हुए नए नवेले कमरे में !!! ***** राखी की बधाई इस उम्मीद के साथ कि कभी तो बहनें भाईयों से मुक्त होकर अपनी रक्षा और जिंदगी स्वयं संवार सकेंगी। संस्कृति, लेन-देन, प्यार, सम्मान एवं गरिमा बनाएं रखिये - अपनी भी और महिलाओं की भी , लेकिन खुदा के वास्ते संरक्षक बनकर किसी महिला की रक्षा करने की ठेकेदारी मत कीजिये।आपकी ठेकेदारी ने ही महिलाओं को हिंसा और नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया है। खाप से लेकर तमाम उदाहरण मेरे सामने मौजूद है। त्यौहार मना लीजिये कोई हर्ज नही पर मेहरबानी कर

आजादी के सात दशकों का हश्र - कालीचाट 7 Aug 2016

आजादी के सात दशकों का हश्र - कालीचाट ये महज एक फिल्म नहीं, एक आर्ट वर्क नहीं, एक कहानी नहीं, एक अभिनय की पारंगतता को दिखाने की होड़ नहीं, एक सधा हुआ निर्देशन का लंबा चौड़ा आख्यान नहीं, एक सेट का चमत्कृत वर्णन नहीं, एक प्रकाश और वेशभूषा का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन नहीं, एक डायलोग और कलाकारों की महत्ता को नकली दंभ से भरने और स्थापित करने का माध्यम नहीं बल्कि एक लम्बी यातना, एक विकास का दंभ भरते देश और कृषि प्रधान होने की प्रलंबित तान और कृषक और किसानी के बीच झूलते समाज और पूरी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था, विश्व में ग्लोबल होते जा रहे देश की एक पूरी पीढी को धोखा देकर जमीनी हकीकतों को छुपाकर देश को वास्तविकता से परे हटाकर अपनी ही जमीन में गड्ढा खोदकर या अपनी ही नाव में छेद कर पानी में खुद के डूबने के साथ पूरी व्यवस्था को डूबोने की कहानी है. यह कहानी मालवा के देवास जिले के सतवास क्षेत्र के गाँव सिन्दरानी की कहानी है जहां विकास ना सिर्फ करवट ले रहा है और इस बहाने वहाँ की जमीन, जल और जंगल के खत्म होने की कहानी है पर बात सिर्फ यहाँ नहीं रुक रही, इस क्षेत्र के किसान जो सदियों से यहाँ खेती कर र

Posts of 7 Aug 16 - मोदी जी गौ रक्षा पर

आज बहुत सोचा और लगा कि छोडो सबकी बातें और विचार, "जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा" अदभुत फिल्म ही नहीं जीवन दर्शन है.........जितनी बार देखता हूँ, कम पड़ता है. बस अब दुनिया जाए भाड में......... चाहत के दो पल भी, मिल पाये  दुनिया में ये भी कम है क्या  दो पल को तो आओ खो जाएं  भूले हम होता ग़म है..... चाहत के दो पल भी अनमोल है जीवन में फिर चाहे अपने आप से किये हो ये चाहत और रूमानियत........ ***** गौ रक्षा के धंधेबाजों को मोदी जी ने कल कड़ी चेतावनी दी, स्वागत योग्य बात है, मोदी जी की मेधा और बुद्धि को प्रणाम, वे दुनिया में देश को जग सिरमौर बनाएं और इतिहास के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध हो यह दिल से दुआएं है मेरी। मेरी अल्प बुद्धि में दो तीन बातें आई एक - दलितों को ही मरे जानवरों की खाल उतारना है और इसका अर्थ यह है कि उन्हें मारो मत नही तो वे बगावत कर रहे है तो यह वीभत्स काम कौन करेगा और फिर दुनिया में प्रचारित हो रहे स्वच्छ भारत की .... दो - 70 % गौ रक्षक जो बीफ निर् यातक है, रेवेन्यू उगा रहे है और देश को नम्बर 1 की जगह रखने का बीड़ा उठाये है, वे शान्ति स

Posts of 4 Aug 16

-------------- खूबसूरत बरसात में बूंदों का तांडव --------------- "मैं जिसका पट्ठा हूँ उस उल्लू को खोज रहा हूँ डूब मरूँगा जिसमें उस चुल्लू को खोज रहा हूँ।" - भारत भूषण अग्रवाल

हिन्दी कविता के अर्थ, मायने और कवियों की आत्म मुग्धता - नवोदित शक्तावत

हिन्दी कविता के अर्थ, मायने और  कवियों की  आत्म मुग्धता  नवोदित शक्तावत  कविताएं    व्‍यक्ति केवल एक ही कारण से लिखता है। दूसरों को पढ़वाने के लिए अभिमत जानने के लिए। वह पक्ष में हो या विपक्ष में। पक्ष में हुआ तो वाहवाही  मिलेगी, विपक्ष में हुआ तो पूरी चेतना उसका विरोध करने में लग जाएगी लेकिन रहेगा केंद्र में दूसरा ही। हर प्रक ार की कविता केवल और केवल दूसरों कोपढवाने के लिए लिखी जाती है, ताकि दूसरों से हमें प्रमाण पत्र मिल सके कि कविता अच्‍छी है। यानी हम दूसरों की आंखों का उपयोग आईने की भांति कर रहे हैं। यदि मैंने अच्‍छा लिखा है तो मुझे पता ही है कि ये अच्‍छा है। अब इसमें मुझे आगे जानने के लिए बचा ही क्‍या है। अब अगर सामने वाला कहता है कि वाह वाह अदभुत, तो मैं ये जानकर क्‍या हासिल कर लूंगा। यानी कुल मिलाकर कविता दूसरों को पढवाई ही इसलिए जाती है कि हम अपने अहंकार को अधिक से अधिक श्रृंगारित कर सकें। तालियों की गडगडाहट से हम खुद को समझें कि हम भी ऐसे वैसे नहीं हैं। हम भी कुछ हैं। समबडी। जो भी    व्‍यक्ति ये बोलता है कि वह स्‍वयं के लिए लिखता है, एकांत में लिखता है, स्‍

शेखर सेन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - देवास में हुए शेखर सेन के कार्यक्रम की आलोचना पर अंध भक्तों की प्रतिक्रिया पर जवाब

शेखर सेन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - देवास में हुए शेखर सेन के कार्यक्रम की आलोचना पर अंध भक्तों की  प्रतिक्रिया  पर जवाब  ****************************************************** भांड जब आत्म मुग्ध होकर किसी प्रतिष्ठित मंच पर चढ़ता है तो उसके मुंह खोलते ही सारी गन्द बाहर आ जाती है । देवास के संगीत समारोह में एक नजारा लाइव चल रहा है । अब समझ में भी आ रहा है कि क्यों ये भांड लोग संगीत कला अकादमी से लेकर फिल्म संस्थानों में काबिज है, राम भजन के साथ भद्दे चुटकुले सुनाने वाले और बेहद गलीज तरीके से आत्ममुग्ध ये लोग पता नहीं क्या समझने लगे है.   आज जो देवास के एक मंच से देश की संगीत कला अकादमी के अध्यक्ष को देखा सुना उससे अंदाज लगाया जा सकता है कि ये लोग किस तरह से घटिया लोगों को संस्थाओं में काबिज करके संस्कृति को क्या स्वरुप देना चाहते है. मेरे लिए मेरी व्यक्तिगत राय में यह सबसे घटिया कार्यक्रम था उस मंच पर जहां भीमसेन जोशी से लेकर बिस्मिल्लाह खान साहब या तीजन बाई जैसी कलाकार ने प्रस्तुतियां दी हो. यह मेरी व्यक्तिगत राय है, आपकी राय अलग हो सकती है। पोस्ट की