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Posts of July I week idd and Aam Bhat



अपने हर इक लफ्ज़ का खुद आइना हो जाऊंगा 
उसको छोटा कह के कैसे मैं बड़ा हो जाऊंगा।


"दुश्मनों ने हमें क्या कहा ये हम याद नहीं रखेंगे, लेकिन दोस्तों की खामोशी को हम कभी भुला नहीं सकते"


मार्टिन लूथर किंग जूनियर

ईद मुबारक
आज घर था तो सोचा आमभात बनाया जाए। सन 1976-77 की बात है , पापा मनावर में काम करते थी, छोटी सी ब्लॉक कॉलोनी में क्वार्टर था, इंदौर आदि के लोग थे। उनके परिजन और बच्चे छुट्टियों में धमाल करते थे। हम भी माँ के साथ पूरे दो महीने मनावर में रहते और मजे करते थे। मनावर में स्टेट बैंक की नई शाखा खुली थी, एक करकरे साहब आये थे उनका परिवार भी था। बैंक खुलने की पार्टी उन्होंने घर दी थी और उनकी पत्नी ने लजीज आमभात बनाया था, जिसका स्वाद आज तक भूला नही हूँ। तब से हर साल सीजन में एक बार जरूर बनाता हूँ।
बहुत सरल है बनाना, आप भी बनाइये इस तरह से और मेरी फीस के रूप में 25 % पार्सल कर दीजिए बस।
बासमती चावल को धोकर घी में भूरा होने तक बघार ले और फिर थोड़ा सा पानी डालें, आधे पकने के बाद गाढ़ा सिर्फ आम का रस डाल कर तक मद्धी आंच पर पकाएं, ध्यान रहे रस में दूध ना हो। फिर जब रस में चावल पक जाए तो शक्कर डाल दें और थोड़ा ज्यादा घी। चाशनी गाढी होने तक बिलकुल हल्की आंच पर पकाएं , फिर बारीक खोबरे का बुरादा डालकर ठंडा करें और बाद मेवे डालकर परोसे। इसे आप आठ दस दिन तक रख सकते है.


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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही