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Posts of 24 April 16


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Two roads diverged in a yellow wood
And i took the path less travelled by
And that has made all the difference
Robert Frost

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ये शाम है और अब रात फिर क्या - किसी को नही पता, जाग विभावरी का वृन्द गान अब सुनाई नही दे शायद ....
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कुछ हिन्दी के स्वयं भू लेखक घर के रहे ना घाट के, जैसे रजत शर्मा राज्यसभा के मुगालते में था वैसे ही ये मेघावी लेखक ना सम्पादक बन पाए किसी तथाकथित घराने के और ना पुरस्कार जुटा पाएं बेस्ट सेलर के, बल्कि जो यहाँ वहाँ काला-पीला करके बने - बुने थे वहाँ से भी बेआबरू होकर हकाल दिए गये. मुगालतों में ऐसा ही होता है भिया, यह दिल्ली शहर और यहां की घटिया जमात ही कमीनापन के लिए प्रसिद्ध है.....अच्छों - अच्छों को लील गया यह शहर तो तुम क्या हो भिया........ हेँ ???
मने कि पूछ रिये है ....

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ऊपर आसमां था, नीचे जमीन 
बस नही था तो एक कोना
जहां बैठकर, ठहरकर दो घड़ी
अपने आप से ही बतिया लिया जाए

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Frailty thy name is woman,
You too Brutas ...
William Shakespeare, the Father of Literature. Just reading once again today and rejuvanating 4 great tragedies, comedies, sonnets and lyrics. Unfortunately he was the only person who could write an Epilogue and Soliloquies. I dont see any then contemporary of his genious nor in today's time, except Leo Tolstoy in Russian. Although, some jokers are still trying hard to copy this Mastero even in Hindi too... how dare they are... Bredley rightly said One and Only ever been in world and literature, though he was greatest critic of W. Shakespeare.
Remembering you Man today with a deep concern, respect, meloncholy and grief.
I am lucky enough to have his complete work in hard boud compiled by Peter Alexander, Late Professor Emeritus of English Language and Literature, University of Glasgow.

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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