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मुंगेली (छत्तीसगढ़) में सामाजिक समरसता का नायाब उदाहरण - 25 दिसंबर 15



ये है फुल्लेश्वरी और इनके पति सूरज प्रकाश, ग्राम बैहाकापा जिला मुंगेली के. आपने विद्या बालन का विज्ञापन सुना होगा कि कैसे वो एक असली हीरोइन के बारे में बताती है जिन्होंने शौचालय ना होने से शादी करने से मना कर दिया था. मुझे भी लगा कि था कि ये महज एक विज्ञापन होगा और मै असली चरित्रों की तलाश में था जो मुझे पिछले पांच बरसों में नजर नहीं आये कभी और मै अपनी धारणा पुष्ट करता रहा कि सब विज्ञापन है और सब सरकारी है, बनावटी और प्रायोजित. पर अचानक एक निजी कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में जाना हुआ. जिलाधिश श्री संजय अलंग जी, जो मेरे अब तक फेस बुक मित्र थे, ने रात के खाने पर आमंत्रित किया. उन्होंने बताया कि  छात्तीसगढ़ के 27 जिलों में यह छोटा सा जिला एकमात्र जिला है - जो अनुसूचित जाति बहुल जिला है और यहाँ उन्होंने डेढ़ वर्ष की अल्पावधि में कई महत्वपूर्ण कार्य किये है जिसमे स्वच्छता मिशन को लेकर उन्हें समुदाय से भरपूर सहयोग भी मिला है. जिस तरह से सवर्ण वर्ग के वर्चस्व को ख़त्म करके दलित समुदाय ने अपनी अस्मिता और सामाजिक भूमिका को लेकर स्वच्छता अभियान में अपनी भागीदारी निभाई है वह सच में प्रशंसनीय है. संजय जी से सुने इस सोशल इंजिनीयरिंग के मॉडल में यह एक नया मॉडल था हमारे लिए खासकरके इस सन्दर्भ में कि अब तक स्वच्छता मिशन में शौचालय बनाने में संख्या देखी जाती है, टार्गेट देखे जाते है, उसके उपयोग और समुदाय की भागीदारी की बात को कही दर्ज नहीं किया जाता है. हमने इस कार्य में थोड़ी रूचि दिखाई और सोचा कि काश यह काम किसी भी गाँव में एक बार देखने को मिल जाता तो शायद मप्र के अनुसूचित जाति बहुल इलाकों में शायद इसका जिक्र हम कर सकें खासकरके मालवा में जहां छुआछुत और जाति की बड़ी समस्या के कारण कई अच्छे अभियान फेल हो जा रहे है. 
अगले दिन संजय जी ने खुद आगे बढकर सहृदयता से कहा कि पंचायत विभाग, रायपुर से सहायक आयुक्त श्री सुभाष मिश्र जी आये हुए है वे एक गाँव जा रहे है सोशल इंजिनीयरिंग का मॉडल देखने, आप लोग भी चले जाईये. यह हमारे मन की बात थी, लिहाजा मै और डा सुनील चतुर्वेदी उनके साथ चल दिए. मुंगेली की उत्साही और युवा जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी डा फरीहा आलम सिद्दीकी और उनके परियोजना अधिकारी साथ थे. सर्किट हाउस पर भोजन के उपरांत हम लोग गाँव के बारे में निकले. डा फरीहा ने बताया कि किस तरह से वे पहले एसडीएम थी कोटा में, जहां ‘ला एंड आर्डर’ ही काम था डंडा लेकर, पर मुंगेली में इस नई जिम्मेदारी से समुदाय में काम करने का बोध तो हुआ ही साथ ही गरीब, सदियों से उपेक्षित दलितों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में किस तरह से प्रशासन काम कर सकता है यह सीखा. मुंगेली का जिक्र करते हुए फरीहा जी ने कहा कि यहाँ उन्हें जिलाधीश से पूरा सहयोग मिला और एक फ्री हैण्ड मिला, जोकि किसी भी प्रयोग और अभियान के लिए महत्वपूर्ण होता है. फरीहा जी ने बताया कि सरकार के पूर्ववर्त्ती प्रयास भी थे परन्तु उसमे समुदाय की भागीदारी नहीं थी लिहाजा शौचालय मात्र बनकर खड़े थे, उनका उपयोग हो नहीं पा रहा था और पहले से बने ढाँचे टूट गए थे. इस नए काम में उनकी टीम ने बीस गाँवों को चुना जहां उन्हें समुदाय का सह्योग मिला. पहले लोगों से लम्बी बातचीत की गयी, गाँवों में जिलाधीश और उनकी टीम ने जा जाकर संपर्क किया उनकी बिजली-पानी से लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की समस्याएं हल की, फिर स्वच्छता की बात की. सवर्ण  वर्ग की अपनी दिक्कतें थी परन्तु दलितों ने स्वच्छता और शौचालयों को  अपनी अस्मिता का प्रश्न बनाया और जी जान से भिड गए. जिले में राशि कम थी और पहली किश्त में उन्होंने योजना अनुरूप हितग्राहियों को आधी राशि का भुगतान किया और उन्हें डर था कि शायद लोग शौचालय बनवा ना पाए और राशि ख़त्म कर देंगे खा पीकर.........परन्तु उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब उन्होंने देखा कि लोगों से चौदह हजार की राशि की सीमा पार करके तीस से लेकर पैतीस हजार रूपये खर्च करके अपने घरों में साफ़, सुन्दर और व्यवस्थित शौचालय बिलकुल डिजाइन के अनुसार (लीट पीच) बनवाये है. इसके साथ ही महिलाओं ने अपने लिए शौचालय से सटकर या थोड़े दूर नहानी घर भी बनवाये है. 


यह सिर्फ एक शुरुवात थी जिससे इनकी पूरी टीम को हौंसला मिला. फुल्लेश्वरी का ब्याह सूरज प्रकाश के साथ हुआ था, परन्तु ससुराल में आने के बाद जब उन्होंने देखा तो वे वापिस लौट गयी. परन्तु सूरजप्रकाश ने इस बात को समझा, वे कहते है महिलाओं को जो बाहर जाने में समस्या होती है उस पर हमने कभी गंभीरता से सोचा नहीं था, रात के समय यह ज्यादा रिस्की भी है और बरसात में ज्यादा खतरनाक है. लिहाजा मैंने प्रशासन के अधिकारी और जिला पंचायत सीईओ मैडम जब गाँव में आई तो मैंने बहुत डरते हुए उनसे बात की, तो उन्होंने बहुत सहज भाव से मुझे मदद का आश्वासन दिया और आधी राशि भी मेरे खाते में जमा की. बस फिर क्या था हमने अपनी जेब से भी रुपया लगाया और बड़ा, पक्का और सुन्दर शौचालय बनवाया साथ में मेरी पत्नी और घर की महिलाओं के लिए नहानीघर भी बनवाया. यह खबर लेकर मै ससुराल गया और अपनी पत्नी से बात की तो वह साथ आने को तैयार हो गयी. आज मेरी पत्नी घर में हम सबके साथ रहती है और गाँव में लोगों को स्वच्छता का महत्त्व भी बताती है और लगातार सबके साथ बैठकें करती है. गाँव में महिलाओं ने कहा कि शौचालय बनने से उन्हें बहुत फायदे हुए है और अब वे एक अच्छा और इज्जत वाला जीवन व्यतीत कर रही है, बाहर जाने पर जो शर्म आती थी वह समस्या ही खत्म हो गयी है, गाँव में पानी की व्यवस्था नल जल योजना और पर्याप्त हैंडपंप होने से शौचालय साफ़ भी रहते है, हालांकि फिनाईल का खर्च बढ़ा है परन्तु बीमारी में दवाईयों पर खर्च करने से माह में सौ रूपये खर्च करना ज्यादा बेहतर है. बुजुर्ग भी अब बाहर जाने के बजाय घरों में ही शौच के लिए जाते है. गाँव में हमें कही भी मल विसर्जन के दृश्य देखने को नहीं मिलें, एकदम साफ़ सुथरा गाँव था. गाँव के सरपंच राजकुमार भारद्वाज ने कहा कि गाँव में बीमारी आश्चर्यजनक रूप से कम हुई है पिछले छः माह में जल जनित रोगों की संख्या बहुत कम हुई है. बच्चे कम बीमार पड़ रहे है, दस्त, पीलिया, मोतीझरा तो लगभग ख़त्म हो गया है और अब हमें अस्पताल जाने की जरुरत कम पड़ती है. युवाओं से बातचीत में युवाओं ने कहा कि शौचालय वे भी धोते है यह सिर्फ महिलाओं का काम नहीं है क्योकि वे इस्तेमाल करते है. बाहर यदि कोई जाता है तो वे मिलकर समझाते है. सरपंच राजकुमार जी ने यह भी कहा कि इस अभियान से दूसरे कई और फायदे हुए है, गाँव में अब समरसता के लिए हम लोग काम कर रहे है, गाँव में लड़ाई होने पर हम समस्याएं गाँव में ही सुलझाने लगे है, पुलिस थानों तक शिकायतें नहीं जाती और लोगों में आपसी सहयोग बढ़ा है जिससे झगडे भी लगभग खत्म हुए है - खासकरके जमीन विवाद और जाति के विवाद. डा फरीहा ने स्कूल में बच्चों के लिए  जन सहयोग से निर्मित शौचालय भी बताये. 
डा फरीहा ने कहा कि मुंगेली छोटा जिला है और शहरी चकाचौंध से दूर है, माल, बड़े बाजार, सिने प्लेक्स या बड़े टाकीज आदि ना होने से यहाँ आकर्षण का कोई बड़ा केंद्र नहीं है, इसलिए हम लोग और हमारी टीम गाँवों में ज्यादा से ज्यादा समय देती है और कोशिश करते है कि लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिला पाए. इस अवसर पर डा सुनील चतुर्वेदी ने गाँव के लोगों के साथ स्वच्छता अभियान की एक रोचक गतिविधि की और साबुन से हाथ धोने का महत बतलाया. सहायक आयुक्त सही सुभाष मिश्र ने पत्रिका पंच जन के बारे में बताया और कहा कि सरकार गाँवों में विकास के नए प्रयास कर रही है और इसके लिए समुदाय को आगे आना होगा.


एक जिले में विजन और सकारात्मक ढंग से यदि सुसंगठित प्रयास मिल जुलकर किये जाये तो कसी तरह सामाजिक तस्वीर बदलती है यह देखना हो तो छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले का प्रयोग देखना चाहिए जहां जिलाधीश श्री संजय अलंग के नेतृत्व में एक बड़ी टीम बदलाव के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रही है.

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