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भूमि अधिग्रणण क़ानून और सामंद्वादी जमीनें........


भारत के लोगों के लिए कल का काला दिन ऐतिहासिक है, जब लोकसभा ने सभी 9 बिलों को हडबडी में बिना सोचे समझे पास कर दिया जिसमे भूमि अधिग्रहण महत्वपूर्ण बिल है. सच में विकास के मायने में यह बिल पास होना अतिआवश्यक था.
मोदी जी और इनकी देशभक्ति को सलाम करने का जी चाहता है जो किसानों और आम आदमी, दलित और आदिवासियों के हमदर्द बनकर उभरे बहुमत से सता में आये और एक झटके में ऐसा बिल बनाया पास किया कि सबकी गरीबी एक झटके में जादू से दूर हो जायेगी.
अब मेरी मांग है कि:-
1. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और केबिनेट मंत्रियों, विधायको और तमाम संवैधानिक पदों पर बैठे लगों के कार्यालय, निजी बंगले, और सरकारी क्वार्टर्स पर भी अधिग्रहण किया जाए जो बीच शहरों में पसरे पड़े है और फ़ालतू की जमीन हथियाए हुए है.
2. सभी राज्यों में प्रशासनिक अधिकारियों के बंगले, क्वार्टर्स , और ऐसे जमीनों पर अधिग्रहण किया जाए जो किसी काम की नहीं है और सिर्फ एक व्यक्ति या परिवार के काम आती है.
3. जिला कलेक्टर्स, एस पी, एस डी एम, तहसीलदारों और तमाम बाबूओं के घरों पर अधिग्रहण किया जाए जो सरकारी लम्बे चौड़े बंगलों में रहते है और पुरी सरकारी संपत्ति को बाप का माल समझकर इस्तेमाल करते है.
अम्बानी , अडानी और तमाम टाटा, बिड़लाओं से करबद्ध निवेदन है कि इन सभी जगहों पर माल बनाए, मल्टी बनाएं, उद्योग खोलें, और निजी हाथों में ले लें.
इस देश के आम लोगों को भूमि अधिग्रहण से कोई दिक्कत नहीं है, बशर्तें इन सभी लोगों द्वारा अनधिकृत रूप से घेरी गयी और अंग्रेजों की घृणित परम्परा को ढोते हुए जिसे हम इन्हें सत्तर सालों से जमींदारी प्रथा और सामंद्वादी तरीकों से कब्जा करके बर्दाश्त कर रहे है. कितने आम लोगों को खबर है कि इन जमीनों के टैक्स का क्या, इनकी सुख सुविधाओं का क्या, इनके पानी बिजली के खर्चों का क्या, और इनके उपयोग या उगाई गयी फसलों या साग सब्जियों का क्या हिसाब है?
अगर मोदी सरकार सच में भूमि अधिग्रहण करना चाहती है तो पहले अपने अन्दर देखें जैसे भोपाल में मुख्यमंत्री का श्यामला हिल्स पर बँगला, या रोशनपुरा पर बना राज्यपाल का बँगला या ग्वालियर में मेण रोड पर कलेक्टर और कमिश्नर के बंगले या सीहोर कलेक्टर का बँगला जहां हर साल खेती बाडी करके मौसमी फसलें उगाई जाती है, या चार इमली भोपाल के बंगले, इंदौर के रेसीडेंसी एरिये में बने शासकीय आवास, विश्वविद्यालयों में पसरी जमीन जहां गाय ढोर चरते रहते है, तमाम बिडला मंदिरों और महांकालों मंदिरों की जमीन, जामा और ताजुल मस्जिदों के पास पडी जमीन, जबलपुर, इंदौर या भोपाल में क्रिश्चियन मिशनरियों के पास अथाह जमीन जो शहरों के बीचो बीच है और मालिकाना कब्जे की है, ये तो सिर्फ चंद उदाहरण है जहां त्वरित कार्यवाही की जरुरत है, बाकी तो हमारे मप्र के नेताद्वय माननीय मेंदोला जी और केबिनेट मंत्री श्रद्धेय कैलाश विजयवर्गीय जी ज्यादा पक्के सबूतों के साथ बता सकते है. संपदा विभाग क्या करता है ???

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