Skip to main content

श्मशान सा समर्पण भाव और सफाई अभियान


आज देवास के श्मशान में जब भाई की अस्थियाँ समेट रहे थे तो वहाँ तीन और परिवार के लोग आये हुए थे और उन्होंने बड़े करीने से सारी अस्थियाँ समेटी, बल्कि हम सबने समेटी, फिर हमने जगह को झाडू से साफ़ किया, साफ़ पानी का छिड़काव किया, फिर एक बाल्टी में पानी के साथ गोबर और गो मूत्र मिलाकर उस स्थान को स्वच्छ किया और फिर कुछ अगरबत्ती लगाकर उस जगह को एकदम पवित्र बनाने की कोशिश की यानी हाईजिनिक किया.
मुझे लगा कि अगर हम उस जगह को इतनी साफ़ कर देते है जिसका उपयोग हमारे जीते जी हम खुद के लिए नहीं कर पायेंगे, और भावना यह रहती है कि कोई दूसरी लाश आयेगी तो उसे साफ़ जगह मिलना चाहिए इसलिए हम सारे लोग बिलकुल भिड जाते है और सफाई में कोई कसर नहीं रखते, क्या हम अपने सार्वजनिक स्थलों को साफ़ नहीं रख सकते?
वही याद आया कि देश में सफाई की बड़ी बड़ी बातें हो रही है नई झाडुएँ खरीदी जाकर मीडिया में छा जाने को नौटंकी निभाने की रस्में अदा की जा रही है और जिस गांधी को मारकर राजनैतिक सफाई की दुहाई पिछले सत्तर बरसो से दी जा रही थी, यकायक उसी गांधी को दुनिया में बेचकर और देश में २ अक्टूबर से सफाई का बड़ा काम हाथ में लिया जा रहा है, क्या मोदी जी या सरकार यह कर पायेंगे?
श्मशान सी सादगी और तन्मयता, या उतने ही समर्पण से हम अपनी सार्वजनिक जगहों पर क्यों नहीं दिखती, सड़क, शौचालय, सीढियां / चढ़ाव,पार्क, सार्वजनिक वाहन, बस स्टेंड, अस्पताल, मंदिर, रेलवे स्टेशन, स्कूल कॉलेज, कूएं, नदी, तालाब या समुद्र, जंगल जमीन, नभ, या अन्य उपयोग की जगहों पर. अगर हम इसी भक्तिभाव और समर्पण भाव से हर जगह को अपना मानेंगे और यह तय कर लेंगे कि हमारे बाद इसका इस्तेमाल कोई और करने वाला है तो शायद देश में सफाई का नजारा ही कुछ और होगा और बल्कि मै तो यह कहूंगा कि हम क्यों यह भी माने कि इसका उपयोग हम करने वाले है भले ही हम ना कर पाए अपने जीवनकाल में परन्तु कम से कम दूसरों के लिए सार्वजनिक जगहों को स्वच्छ रखें.
मैंने तो तय किया है कि आज से यही करूंगा मुझे किसी जगह को काम में लेना हो या नहीं परन्तु दूसरों के लिए सफाई का काम जरुर करूंगा चाहे कुछ भी हो जाए, बोलिए आपको मंजूर है यदि हाँ तो सच्चे दिल से प्रण कीजिये और बस लीजिये हो गया सब साफ़ सुथरा एकदम से. राजनीती अपनी जगह पर अगर प्रधान मंत्री दिल से देशवासियों का आव्हान कर रहे है तो आईये अपने परिसर और वातावरण को स्वच्छ करें और सम्पूर्ण भाव से इस अभियान में योगदान दें.
L

Comments

वाक़ई ! सफ़ाई चंद मौकों और वक्तों की मोहताज हो गयी है ,
बिलकुल सही है की इस को उस बूढ़े माली की तरह
सहेजा जाये जिस से किसी ने पूछा की जो झाड़ तुम संभाल कर लगा रहे हो उसे फलने में 20 से 25 वर्ष लगेंगें तुम खुद तो इस के फल खा नहीं पाओगे ?
उस ने मुस्कुरा कर कहा और जो बचपन से ऐसे
फल खा रहा हूँ उस भी तो किसी ने लगाया होगा

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही