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सहरिया आदिवासियों में कुपोषण


Photo: श्योपुर और शिवपुरी में सहरिया आदिवासियों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। तत्कालीन कमिश्नर महिला बाल विकास डा मनोहर अगनानी के मार्गदर्शन में ग्राम ऊँची खोरी कराहल ब्लाक जिला श्योपुर में आठ दिन तक कलेक्टर और जिले के पुरे अमले के साथ समय लगाया था  कि हालत सुधारे जा सके। एक रिपोर्ट भी बनी थी जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया क्योकि इसमे सरकारी तंत्र के कई विफलता के आकर्षक किस्से थे। बहुत कुछ निर्णय लिए गए, डा अगनानी ने जिला कलेक्टर और विभागों को कई निर्देश दिए थे , पर ढाक के तीन पांत। इतने बड़े लवाजमे ने यह नतीजा निकाला था कि 89% आबादी भयानक कुपोषित है। संस्थागत प्रसव नहीं होता आज भी , क्योकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रिश्वत माँगी जाती है। गाँव की एक आंगनवाडी में 2012 से कार्यकर्ता की नियुक्ति नहीं हुई है और दूसरी मिनी आंगनवाडी कार्यकर्ता माह में मुश्किल से आठ दिन आती है। मैंने कल देखा कि टेक होम राशन भरा पडा है जो बंट नहीं रहा ठीक तरीके से , और एक तो एक्सपायर्ड भी हो गया था। कम से कम पंद्रह थैले पड़े थे। 

ध्यान रहे कि शिवपुरी और श्योपुर यूनिसेफ के उच्च ध्यान देने वाले जिले आज भी है जहां यूनिसेफ के अधिकारी  इन जिलों को राज घाट की तरह से हर माह में कम से कम दस बार दौरा करके कागजी रपट बनाते रहते है। सैकड़ों की संख्या में यूनिसेफ के निठल्ले कंसल्टेंट्स यहाँ आकर अपना भत्ता और होटलों में रहकर रूपया कमाते है पर सहरिया आदिवासी की हालत बहुत खराब है।

मप्र योजना आयोग विकेन्द्रित नियोजन और ट्राईबल सब प्लान के नाम पर अपनी पीठ ठोकता रहता है पर हालात और खराब होते गए है। इतनी खराब हालत है कि ग्राम के सभी परिवारों के लिए यानी 396 लोगों के लिए मात्र एक हेंडपंप है जो बहुत कम पानी देता है अब वे लोग पानी पीयें या नहाए धोये और वाश जैसी नौटंकी करें। मुझे नहीं लगता कि योजना आयोग में सालों से बैठे चाटुकार आय ऍफ़ एस जो सलाहकार है और सारे बजट को जेब में रखकर चलते है कभी श्योपुर गए होंगे, उन बेचारों को विदेश यात्राओं और मुख्यमंत्री की जी हुजूरी से फुर्सत  मिलें तो कुछ सोचें ! 

इस प्रदेश में अब शर्म ख़त्म हो गयी और योजना आयोग और अन्य प्रशासन और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं को भी यश और कीर्ति का कीड़ा लग गया है। काम कुछ नहीं और रूपया और नाम चाहिए। सहरिया आदिवासी के नाम पर क्या कुछ नहीं हुआ पर बच्चे आज भी कुपोषित है और मर रहे है। जिला प्रशासन कागजो की दौड़ लगाता है ओर जो एनजीओ काम करना चाहते हई उन्हें अधिकारी रिश्वत देकर उनका मुंह बांधने की कोशिश करते है। 

सच में तीन नोटिफाईड आदिवासी- बैगा, भारिया और सहरिया का प्रदेश में भगवान् ही मालिक है। सच में व्यापम से या इन्वेस्टर्स मीट से किसी को समय मिले तो इनकी ओर ध्यान दें।


श्योपुर और शिवपुरी में सहरिया आदिवासियों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। तत्कालीन कमिश्नर महिला बाल विकास डा मनोहर अगनानी के मार्गदर्शन में ग्राम ऊँची खोरी कराहल ब्लाक जिला श्योपुर में आठ दिन तक कलेक्टर और जिले के पुरे अमले के साथ समय लगाया था कि हालत सुधारे जा सके। एक रिपोर्ट भी बनी थी जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया क्योकि इसमे सरकारी तंत्र के कई विफलता के आकर्षक किस्से थे। बहुत कुछ निर्णय लिए गए, डा अगनानी ने जिला कलेक्टर और विभागों को कई निर्देश दिए थे , पर ढाक के तीन पांत। इतने बड़े लवाजमे ने यह नतीजा निकाला था कि 89% आबादी भयानक कुपोषित है। संस्थागत प्रसव नहीं होता आज भी , क्योकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रिश्वत माँगी जाती है। गाँव की एक आंगनवाडी में 2012 से कार्यकर्ता की नियुक्ति नहीं हुई है और दूसरी मिनी आंगनवाडी कार्यकर्ता माह में मुश्किल से आठ दिन आती है। मैंने कल देखा कि टेक होम राशन भरा पडा है जो बंट नहीं रहा ठीक तरीके से , और एक तो एक्सपायर्ड भी हो गया था। कम से कम पंद्रह थैले पड़े थे।

ध्यान रहे कि शिवपुरी और श्योपुर यूनिसेफ के उच्च ध्यान देने वाले जिले आज भी है जहां यूनिसेफ के अधिकारी इन जिलों को राज घाट की तरह से हर माह में कम से कम दस बार दौरा करके कागजी रपट बनाते रहते है। सैकड़ों की संख्या में यूनिसेफ के निठल्ले कंसल्टेंट्स यहाँ आकर अपना भत्ता और होटलों में रहकर रूपया कमाते है पर सहरिया आदिवासी की हालत बहुत खराब है।

मप्र योजना आयोग विकेन्द्रित नियोजन और ट्राईबल सब प्लान के नाम पर अपनी पीठ ठोकता रहता है पर हालात और खराब होते गए है। इतनी खराब हालत है कि ग्राम के सभी परिवारों के लिए यानी 396 लोगों के लिए मात्र एक हेंडपंप है जो बहुत कम पानी देता है अब वे लोग पानी पीयें या नहाए धोये और वाश जैसी नौटंकी करें। मुझे नहीं लगता कि योजना आयोग में सालों से बैठे चाटुकार आय ऍफ़ एस जो सलाहकार है और सारे बजट को जेब में रखकर चलते है कभी श्योपुर गए होंगे, उन बेचारों को विदेश यात्राओं और मुख्यमंत्री की जी हुजूरी से फुर्सत मिलें तो कुछ सोचें !

इस प्रदेश में अब शर्म ख़त्म हो गयी और योजना आयोग और अन्य प्रशासन और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं को भी यश और कीर्ति का कीड़ा लग गया है। काम कुछ नहीं और रूपया और नाम चाहिए। सहरिया आदिवासी के नाम पर क्या कुछ नहीं हुआ पर बच्चे आज भी कुपोषित है और मर रहे है। जिला प्रशासन कागजो की दौड़ लगाता है ओर जो एनजीओ काम करना चाहते हई उन्हें अधिकारी रिश्वत देकर उनका मुंह बांधने की कोशिश करते है।

सच में तीन नोटिफाईड आदिवासी- बैगा, भारिया और सहरिया का प्रदेश में भगवान् ही मालिक है। सच में व्यापम से या इन्वेस्टर्स मीट से किसी को समय मिले तो इनकी ओर ध्यान दें।

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