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छत्तीसगद की यादे


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श्रीराम वाटिका कांकेर, छग । 

छग वाकई बहुत सुन्दर है दोस्तों। आज इस घने वन प्रांतर में देखा और इसी समय सीमा सुरक्षा बल के एक जवान सूरज सिंह से बात हुई उसने बताया कि आज डी जी पी आने वाले है इसलिए सड़कों पर हर सौ मीटर की दूरी पर जवान मुस्तैद है। सूरज बारहवी पास है और बीकानेर का रहने वाला है। उसने कहा कि इतने सुन्दर जंगल है छग में फिर ये नक्सलवादी क्यों है यहाँ ??? और उसने सिर्फ पूछा कि हमारी प्लाटून कब तक यहाँ गर्मी में सड़को पर, जंगल में ड्यूटी देती रहेगी??? मेरे पास सच में कोई जवाब नहीं था मित्रों।










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एक बार फिर कांकेर में अपनी पसंदीदा किताब की दूकान पर। अबकी बार पहली जो किताब ली वो थी "तीन सहेलियां तीन प्रेमी" यह मित्र आकांक्षा पारे काशीव का कहानी संग्रह है।



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जब जंगल से गुजरता हूँ तो घने पेड़ों, पक्षियों के कलरव, सुने पड़े पत्थरों और ऊँची घास में लगता है कही खो जाऊं और एक बार फिर से अपने आप को खोजना शुरू कर दूं कि कभी तो किसी मान्द से निकलकर एक पुरे वजूद के साथ निकालूँगा अपने आपको - जो इन दिनों पता नहीं किसी होड़ और दौड़ में खो गया है।

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जगदलपुर के चित्रकोट से लिया बेहद खूबसूरत दृश्य। 
सच में जिन्दगी का शुक्रगुजार हूँ कि ऐसे पल मुझे दिए कि मै भरपूर जी सकूं, खासकरके अब जबसे नौकरी छोड़कर यायावरी का काम शुरू कर दिया है तो जिन्दगी और भी हसीन हो गयी है। 
पत्थर, पेड़ और पानी के बीच अपनी जिंदगानी !!!
बस मिस करता हूँ तो सिर्फ तुम्हे....सुन रहे हो....... ना कहाँ हो तुम ??????

















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आज जगदलपुर के अन्दर के तीन गाँवों में जाने का मौका मिला। जब स्थानीय लोगों से बात कर रहा था तो पता चला कि यह हल्बी बोली है, जो इस हिस्से में बोली जाती है। अचानक मुझे लगा कि कई शब्दों से मै वाकिफ हूँ और फिर ध्यान से सुना तो लगा कि यह तो मेरी मातृभाषा मराठी है। फिर तो मै लग गया सुनने में और मैंने जोखिम में कुछ शब्द बोल लिए , आप यकीन नहीं करेंगे मुझे एकदम सही जवाब मिलें। यह एक आश्चर्य था फिर लगा कि महाराष्ट्र का असर है और दक्षिण का भी। बहुत अच्छा लगा ।

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ये हो सल्फी का पेड़ और सल्फी के बीज।
कल आपसे वादा किया था ना !!!
अभी चखा नहीं है देखूंगा चख कर बताता हूँ कि कैसा स्वाद है। बस्तर में सल्फी यानि एक वृक्ष है जिसके नए तने की शाखा से एक रस निकालते है जिसे पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है और अक्सर यह नशे के विकल्प के रूप में मस्ती में आने के लिए जाना जाता है । कोशिश करूंगा कि आपको सल्फी के पेड का फोटो भी कल फील्ड से निकालकर दिखा सकूं ।


ग्राम घाट घनोरा, ब्लाक तोकापाल जिला जगदलपुर , छग
 
ओर् ये है बस्तर का बाज़ार जहां एक कोने में आपको सल्फी से लेकर महुआ की शराब और कच्चा माल भी मिल जाएगा। साथ ही इमली अमचूर भी बहुतायत में मिल जायेंगे ।












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ये है ग्राम कुरेंगा का बड़े पखना रचा पारा , ब्लाक तोकापाल, जिला जगदलपुर के निवासी। यह गाँव जिला मुख्यालय से मात्र तेईस किलोमीटर दूर है। पर यहाँ ना बिजली है ना पानी। गाँव के निवासी परेशान है और कहते है की हमारे पास पांच किलो से ज्यादा के आवेदन हो गए है पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। मैंने भी गाँव के कूए का लाल पानी पीया अभी जो ये लोग पीकर प्रायः बीमार रहते है।

मेरे मित्र Chandrakant Insan जो कवर्धा से है, कह रहे है कि उनके जिले में सौ से ज्यादा गाँव है जहां बिजली नहीं है

बस बताने को कि छग में इतनी बिजली है की राज्य बेचता है और शत - प्रतिशत विद्युतीकरण के दावे अक्सर अखबारों में देखने को मिलते है।




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दरभा घाटी का नाम पिछले दिनों में देश और विदेश ने बहुत सुना है। यह वही जगह है जहां अक्सर नक्सलवादी लोगों को, फौज को, या राजनेताओं को निशाना बनाया करते है।
आज जब यहाँ से गुजर रहा था तो एक सिहरन सी थी । शाम का समय, हवाओं में तेजी और आकाश से बूंदा बांदी पर फिर लगा कि क्या डरना अब यहाँ तक आये है तो देख ले इसे भी।
रास्ते में पड़े गाँवों में स्थानीय मुरिया और मुडिया आदिवासियों से बात की। आश्चर्य यह लगा कि इन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत फौज से है जो जीवन को अस्त व्यस्त बना रही है। जहां लोगों को और खासकरके छोटे किसानों और दुकानदारों को सुरक्षा मिली है वही और लोग फौज के हस्तक्षेप से परेशान है।
पास ही तीरथगढ़ नामक सुन्दर एवं रमणीय स्थान है। कहते है श्रीराम वनवास के दौरान यहाँ रहे थे। मुझे यह जल प्रपात, चित्रकोट से अच्छा लगा और बहुत शांत भी।
लौटते में मन में बहुत शांति थी, हालांकि बहुत थक गया था तन मन से पर लगा कि सब ठीक है।

बहुत मिस कर रहा था तुम्हे आज फिर इस बियाबान में। कहाँ हो तुम???

आदिवासियों की समस्याएं कब हल होंगी कब उन्हें हम अपने सामान नागरिक मानेंगे, कब बच्चों को उनके जायज हक़ मिलेंगे, कब वन भूमि के पट्टे मिलेंगे, कब स्वास्थ्य सुविधाएं उन तक पहुंचेंगी???
लगता है कि जो साथी उनकी लड़ाई लड़ रहे है वह इस व्यवस्था को हिलाने के लिए पूर्णतया जायज है।
कब तक हम देश में तीन चार स्तरीय व्यवस्था चलाते रहेंगे, कब तक लोग साठ से सत्तर किलो मीटर वोट देने जायेंगे और बीस किलोमीटर तक राशन लेने जाते रहेंगे बार बार? कब तक इन लोगो से जिला अस्पतालों में डिलीवरी के लिए छह सौ रूपये मांगे जायेंगे और मुख्य चिकित्सा अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड लेंगे कि यह बंद करना मेरे बस में नहीं है।
कैसा देश हमने बना दिया है इन सत्तर बरसों में??? क्या सच में अच्छे दिन कभी आयेंगे इन बैगा,मुडिया, पहाडी कोरबा और कोरकू गौंड आदिवासियों के जीवन में???







 


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लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गाँव में 
अब इकठ्ठे हो चले है लोग मेरे गाँव के,
ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गाँव के....



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बड़ी बेवजह जिन्दगी जा रही है....
ये घने साए, ये पेड़ और ये लम्बे रास्ते - पता नहीं यह कहाँ ले जायेंगे और जब लौट जाऊं तो पूछना मत कि ये खामोशी क्यों है, ये वीरानी क्यों है, ये चेहरे से उदासी क्यों नहीं जाती, पर इस सबके बीच यह जरुर पूछ लेना कि कैसे लौटा हूँ और इतना खाली सा क्यों हो गया हूँ और क्यों रीता रह गया.....

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एक ही आदिवासी गाँव में तीन समुदाय , तीन भाषाएं और तीन संस्कृति छग के गाँवों में 
हिन्दी का कही प्रयोग नहीं 
पर सारे नारे, निर्देश,पर दीवार लेखन हिन्दी में। हालांकि बच्चे पढ़ तो लेते है जैसे तैसे परन्तु उसका अर्थ बूझ नहीं पाते। सब हिन्दी में पर स्थानीय बोलियों और भाषा का किसी ने ध्यान नहीं रखा। यहाँ यूनिसेफ जैसी संस्थाएं भी है जो IEC के नाम पर टनों से हर बरस सामग्री छापती है और बांटती है पर ढाक के तीन पांत!!!
कोई भाषाविद है यहाँ और विवि के भाषा विभाग , समाज विज्ञानी ??? किसी का ध्यान है या सब लहर में बह रहा है बारह सालों से। सिर्फ हस्त शिल्प विकास निगम के धन्धेवाले विकास है सिर्फ

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Mohan Kumar Deheria हमारे अग्रज है और केन्द्रीय विद्यालय धमतरी में प्राचार्य है। मोहन भाई हिन्दी के वरिष्ठ कवि है। इनके तीन संग्रह आ चुके है और हाल ही में दखल प्रकाशन से एक और संग्रह आया है। 
मोहन भाई ने बहुत आग्रह किया कि मै रुक जाऊं ताकि कुछ सत्संग हो सकें, पर समय ही कुछ ऐसा था कि चाहकर भी नहीं मिल सका। पर अभी जब जून में आउंगा तो जरुर ढेर सारी कवितायें सुनूंगा और खूब गप्प भी। यह वादा है अपने अकादमिक सत्र के आख़िरी दिन समय देने के लिए मोहन भाई का आभार और स्नेह के लिए तो मेरा हक़ है ही। 




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नाम के साथ डाक्टर साहब की तस्वीर भी ताकि अगर डाक साब कमरे में ना हो, और सरकारी अस्पताल में कही घूम रहे हो तो बेचारे मरीज पहचान लें और कह सके कि चलो डाक साब अपने परीक्षण कक्ष में और मरीजों की जांच करो!!!!!!

वैसे आईडिया बुरा नहीं, छग के एक जिला अस्पताल के एक कक्ष के बाहर लगी तख्ती, ये दीगर बात है कि जब यह तस्वीर मैंने ली तो डाक साब कक्ष में नहीं थे , ना ही मुझे परिसर में कही नजर आयें !




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नाम ही नहीं काम भी पञ्च का। 
पंचराम ओगर, ग्राम सिवनी के जिला गरियाबंद छग.




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कल छग के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल कह रहे थे कि राज्य में स्मार्ट कार्ड का सभी उपयोग कर रहे है।
ये है घनाराम और रामेश्वर जो ग्राम पंडरी पानी कमार ब्लाक छुरा जिला गरियाबंद के रहने वाले है। इनके पास भी स्मार्ट कार्ड में डाले हुए सरकार के तीस हजार रूपये है। पर जब घनाराम के भाई बीमार पड़े तो वे कार्ड इस्तेमाल करने जिला अस्पताल पहुंचे उन्हें वहाँ से राजिम भेज दिया फिर राजिम में भी कार्ड का कोई मतलब नहीं हुआ रायपुर वे जा नहीं सकते थे क्योकि वे गरीब भी है और विशेष आदिवासी PT G Tribes में आते है। फिर उन्होंने कई लोगों से भाई के इलाज के लिए याचना की पर कुछ नहीं हुआ, आखिर उनके भाई की मृत्यु हो गयी। 
लगभग पचपन गाँव और छह जिले घूम लिया हूँ। जिस स्मार्ट कार्ड की बात छग के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल कर रहे है कि यह उपयोगी है और इससे तीस हजार तक इलाज हो जाता है। वह बिलकुल गलत है मै यह बात अपनी बातचीत और ठोस सबूतों के आधार पर कह रहा हूँ । इस सभी गाँवों में भयानक पीला पानी और आयरन से भरपूर पानी कूओं और हैण्डपम्पों से आ रहा है और लोग पीने को मजबूर है। सरकार ने Water Treatment का कोई उपाय नहीं किया है। मै खुद रोज़ सौ से डेढ़ सौ रूपये का पानी खरीदकर पी रहा हूँ कि पीलिया से बचा रहूँ. स्मार्ट कार्ड के नाम पर सिर्फ ढकोसला है और कुछ नहीं। मुश्किल से दस से पंद्रह प्रतिशत लोग इसका इस्तेमाल कर पा रहे है बाकि तो मरने कोे मजबूर है या रिश्वत देकर अपना इलाज करवाने को मजबूर।



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ग्राम कामराज ब्लाक छुरा जिला गरियाबंद। यह मूर्ति है स्व कृष्ण कुमार की जिसकी उम्र थी पच्चीस बरस मात्र। 22 मई 2012 को आमामोरा में अपने दस जवान साथियों के साथ यह ड्यूटी से लौट रहे थे और अचानक नक्सलियों ने हमला बोल दिया और घटना स्थल पर ही नौ जवानों की मृत्यु हो गयी। सरकार ने इनके गाँव में इनकी मूर्ति लगाकर एक स्मारक बनवाया है दो भाइयों में से एक भाई पुरुषोत्तम को अनुकम्पा नियुक्ति दी है। श्रीमती यशोधरा जो गाँव की निवासी हो कहती है, सरकार कुछ करती क्यों नहीं, हमारे जिले के लगभग हर गाँव में ऐसे स्मारक है पर कोई ठोस पहल नहीं है "दादालोगों" (नक्सलवादी) से मिलकर रास्ता निकालने की ।

कल Vishal Pandit ने पूछा था कि शहीद क्या होता है, मै भी समझ रहा हूँ कि शहीद क्या होता है???







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गरियाबंद में जीवन लाल देवांगन की पान की दूकान जो लिम्का बुक रिकॉर्ड में दर्ज है पांच सौ प्रकार के डिजाइन बनाने के लिए। मैंने अभी एक पान खाया तो यह दिल नुमा पान बनाकर दे दिया । अब पूरा परिवार यह व्यवसाय करता है और बड़े प्यार से सबसे मिलते है।
जीवन लाल कह रहे थे कि मुझे बनारस में ना होने का गम नहीं और जब एक चायवाला गुजरात से प्रधानमंत्री होने का मुगालता पाल सकता है तो गरियाबंद का यह जीवन लाल क्यों नहीं बन सकता है।
अच्छा है भाई सब प्रधानमंत्री बनो नागरिकों की हमें अब जरुरत नहीं हो, क्योकि बहुत नीच, मुसलमान , हिन्दू और ना जाने कौन कौन इस देश में है और घुसपैठिये भी।









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Had wonderful time in Pandariya Kavardha.

Really Baiga community is a wondedful community people full of life, fun and amazing knowledge. I am speechless and four wordless days in dence forest and top hills surrounded by boundry of Mandla and Dindori of MP. Jungle can be so nice I never thought, attending marriages and looking their culture, life, struggle and how they are giving a tough fight to life and surviving, winning.





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छग का खजुराहो
भोरमदेव का मंदिर 
खजुराहो जैसा तो नहीं पर हाँ लोकेशन और माहौल बढ़िया है। आदित्य, छंद मित्रा, अशोक और चंद्रकांत महेंद्र के साथ आज के दिन की शुरुआत 
काम के दौरान जब भोरमदेव जी बीच में आये तो हम भी मत्था टेक आये।







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भयानक गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामवासी आज मेरे सामने एक कोठी में पानी ले आये लोग। 

ग्राम मंगली ब्लाक पंडरिया जिला कवर्धा। 

अच्छे दिन आने वाले है सच में।



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ये है ग्राम चतरी , ब्लाक पंडरिया, जिला कवर्धा यानी छग के मुख्यमंत्री का जिला। 
अंजोरा बाई बचपन से देख नहीं पाती, पंच कुमारी विकलांग है एक बांस से चलती है, नंद्खुशिया और गायत्री बाई निराश्रित पेंशन पाती है।
पिछले छह माहों से इन्हें और गाँव के करीब पचास लोगों को पेंशन नहीं मिली और ये लोग परेशान है। ना रोजगार का काम है , ना मजदूरी का भुगतान और ना राशन दुकानों पर हालात ठीक है। मध्यान्ह भोजन का रूपया चार महीनों से अटका पडा है और बाकी तो ठीक ही ठीक ही है। स्मार्ट कार्ड कब से ख़त्म हो गए नवीनीकरण नहीं हो रहा।
मजेदार यह है कि लोग बारीकी से इन सबकी निगरानी कर रहे है आवाज उठा रहे है पे हालात जस के तस है। मुख्य मंत्री जी का जिला होने पर भी गाँवों की स्थिति खराब है। और यहाँ बैगा आदिवासी ज्यादा है यानी PTG !!!!!!!
आंगनवाडी में दो माह से चावल भी नहीं है कार्यकर्ता अपने घर से चावल लेकर बच्चों को खिला रही है। इससे शर्मनाक क्या होगा और तो और इस क्षेत्र की मितानिनों को अरसे दवाई नहीं मिली है।
अब बोलिए अच्छे दिन कब और कैसे आयेंगे।
एक बात और रोजगार ग्यारंटी के भुगतान के लिए बैंक और पोस्ट ऑफिस भी जिम्मेदार है।


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Meeting my Pride Student Rakesh Ghodeshwar aftet a long time in Bemetara CG.
Rakesh is an officer and heading branch of State Bank of India. It was great meeting him after a long. We talked about the time spent in St Marys Convent Dewas 1998.



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छग के काम के आख़िरी चरण में बस अब दो जिले और शेष है.............

भरी गर्मी और दूर दराज के गाँव .तकलीफ तो बहुत हुई पर जितना मजा आया सीखा वह सच में मेरे लिए बहुमूल्य है, चौपाल छग नामक संस्थान का आभारी हूँ और मित्र सचिन जैन का जिनकी वजह से यह मौका हाथ लगा. इस दौरान बहुत बारीकी से आदिवासियों को देखा समझा और बारीकी से उनके जीवन से जुड़ने का मौका मिला है.

बैगा, कोरवा, उरांव, गौंड, मडिया, मुरिया, कमार, भुंजिया, बिंझवार, मुंडा, तूरिया आदिवासियों के साथ साहू, घरिया और अन्य पिछड़ा जातियों के रहन सहन और तौर तरीकों को उनकी संस्कृति रीति-रिवाज और मान्यताओं को भी देखा समझा है.
मेरे लिए 45 दिन एक अमूल्य धरोहर है.

सच में छग सुन्दर, संयमी और अच्छा प्रदेश है और यहाँ के लोग बहुत अच्छे है.

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ये है ग्राम ठिनठीनी अम्बिकापुर से अठारह किमी दूर। यहाँ एक विचित्र पत्थर है जो बजाने पर सुमधुर घंटी की आवाज निकालता है। आसपास और भी पत्थर है पर यह एक अनूठा पत्थर हो। भाई मजा आ गया पत्थरों में से मधुर आवाज सुनकर और आप लोग कहते है कि पत्थर के सनम !!!!!!


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जीवन में जितनी मूर्खताएं करेंगे उतने खुश रहेंगे!!!!










इस बीच बहुत कुछ है जो दरका है हम सब के बीच

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गाँव छोडो बे नाही
जंगल छोडो बे नाही !!!
इस नवविवाहित जोड़े को सलाम जो दूर गाँव में पहाडी कोरबा आदिवासियों के बीच अलख जगाने का काम कर रहा है। आज दिल से दुआएं देकर लौटा हूँ नितेश और सरोज को । सरोज अभी बी एस सी पढ़ रही है और दिलेरी से नरेगा ,सामाजिक सुरक्षा और आंगनवाडी, मध्यान्ह भोजन के लिए काम करती है। नितेश एक आई टी आई में पढ़ाते है और गाँव में सरोज के साथ कामों में हाथ बंटाते है।

जिंदाबाद, जिंदाबाद। अच्छे दिन जरुर आयेंगे।







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इस शाम की सुबह कभी ना हो और ऐसे ही ढल जाए कही रात के आँचल में धीमे से अपनी साँसों को आहिस्ते से छोड़ते हुए.......और ख़त्म हो जीवन का रुदन, बेचैनी और अवसादों को ख़त्म करते हुए..




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इतने कटहल है कि सड जाते है पर उपयोग नहीं हो पाता, ना बिकता है ना हम कोई और उपयोग जानते है। कितनी सब्जी बनायेंगे और खायेंगे । ग्राम भाद्रापारा ब्लाक राजपुर जिला बलरामपुर छग के कई पेड़ों के बीच बहुत रोमांच हुआ आज इतने सारे कटहल के पेड़ों को देखकर . काश मै सीधा यही से घर आ रहा होता तो ये सारे कटहल एक ट्रक में भरकर ले आता और खूब अचार चिप्स और सब्जी बनाता या आप सबको भी भेंट कर देता !!! 



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सूनी है जीवन की डगर .....



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ये ग्राम मुनवाँ ब्लाक राजपुर जिला बलरामपुर , छग की महिलाओं के गोदने है जो हाथ और पाँव पर बहुत खूबसूरती से बनाये है। तकलीफ तो बहुत होती है पर वे कहती हो कि सोना चांदी तो हमारे पास कम होता है। जब इश्वर के घर जायेंगे तो सोना चांदी और खेत घर यही रह जाएगा , पर यह गोदना हमारे साथ जाएगा, इसलिए सब कष्ट मंजूर है और जो भी दो सौ से पांच सौ रूपया लगता है वह भी मंजूर है।


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इन रेशमी राहों में
इक राह तो वो होगी
तुम तक जो
पहुँचती है......


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ये है अजय पाल और इनके दोस्त आज सुबह एक खाली स्कूल के कमरे में दिख गए जब पूछा कि क्या कर रहे हो तो पता चला कि ये छह सात दोस्त रोज़ सुबह पांच बजे से दोपहर ग्यारह बजे तक मिलकर पढाई करते है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते है। मेरे लिए यह आश्चर्यजनक था।

ये आपस में एक दूसरे को पढ़ाते और समझाते है साथ ही मिलकर सवालों को हल करते है। सबने अपनी मजदूरी से किताबें खरीदी है अखबार पढ़कर बहस करते है और पत्रिकाएं भी पढ़ते है। जहाँ एक ओर देश भर में एनजीओ से लेकर सरकार युवाओं को जोड़ने के कई काम कर रही है वही ये बगैर किसी मदद के आपस में एक सार्थक प्रयास करके अपना भविष्य संवारने में लगे है।

जब मैंने पूछा तो बोले अंगरेजी और गणित की दिक्कत है तो मैंने कहा की बोलो जैसे क्या तो बोले जैसे आर्टिकल a, an और the का प्रयोग। मेरा पुराना मास्टर जाग गया तो उन्हें आर्टिकल समझा दिया कि इनका कैसे उपयोग करते है। वे बोले इतना सरल और इतना आसान फिर कुछ प्रश्न दिए तो यकीन मानिए सबने शत प्रतिशत हल कर दिए और सब सही थे।

इतनी खुशी हुई मुझे कि बयान नहीं कर सकता। कहाँ एक ओर देश के युवा फ़ालतू कामों में समय गंवा रहे है वही ये युवा जो बारहवीं पास या स्नातक है कितनी लगन से अपना भविष्य बनाने में लगे है। बधाई और अशेष शुभकामनाएं देकर लौटा हूँ ग्राम लगरा जिला जांजगीर के इन जांबाज युवाओं को।




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ये है यशवर्धन सिंह ग्राम भलवाही ब्लाक पामगढ़ जिला जांजगीर के आंगनवाडी के सदस्य। मेरे नए दोस्त और एक होनहार मॉडल आने वाले समय के हीरो। भाई यश से मिलकर मजा आ गया। ये देश इन बच्चों का है और इन्ही के हित में हमें सब काम करने है.









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Ravi Shankar Singh और मै बहुत पुराने मित्र है। एक जमाने में जब देश में साक्षरता अभियान और भारत ज्ञान विज्ञान समिति का काम शुरू हुआ था तो हम अविभाजित मप्र में साथ काम कर रहे थे। रवि से इस दौरान लगातार संपर्क बना रहा। जब भी इधर आता उससे मुलाक़ात हो जाती पर बच्चों से मिलने का मौका नहीं मिला रवि के। आज आखिर वह घड़ी आ ही गयी। हालांकि जांजगीर से थक कर आया था और देर भी हो गयी थी पर फिर खाने का और उससे ज्यादा बच्चों से मिलने का मोह छोड नहीं पाया। खूब अच्छा खाना खाया बड़े दिनों बाद, घर का सात्विक खाना। अरुणा ने बहुत मेहनत से बनाया था।
ये है अनिमेष और यतीन्द्र ....मेरे नए दोस्त। शुक्रिया रवि






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With Kunwar Manvendra Singh Kunwar Manvendra Singh at Bilaspur.
It was good to meet him and discuss. Govt of MP is nt taking his issues of appoitment , in spite of Hon Supreme Court's order. Disgusting indeed.




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जांजगीर के गाँवों में कोसा का काम बहुत होता है। यहाँ का कोसा जग भर में प्रसिद्द है। ये है ग्राम खरौद के एक देशी लूम का जहां एक साड़ी बुनी जा रही है।

इस गाँव में 126 तालाब है कितना सुखद है यह एहसास भी।




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ये है जांजगीर जिले में शिवरी नारायण का मंदिर। कहते है यह शबरी का जन्म स्थान है और श्रीराम लक्ष्मण ने सीता हरण के बाद यहां कई साल बीताये थे। ये राम और लक्ष्मण की मूर्तियाँ एक कुण्ड पर खडी है और बहुत उदास है। सामने शबरी का मंदिर भी है। अदभुतवास्तु शिल्प है और बहुत बड़ा कैम्पस। यहाँ श्रीराम ने जो रामेश्वरम में सेतु बनाया था लंका जाने के लिए उसका एक पत्थर भी रखा है। इस मंदिर का निर्माम तीन हजार साल पहले देवताओं के वास्तुविद विश्वकर्मा ने किया था।

अफसोस कि इसी मंदिर में सन 2008 में एक पुजारी ने एक चौदह साल के बच्चे की बलि दी थी और बलि के बाद वह भाग गया था तब से यहाँ ले लोग बहुत जागरिक है।
बहरहाल आप इन चित्रों का आनंद लीजिये।


















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