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सत्यनारायण पटेल का नया कहानी संग्रह 'काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस'




अनुज  सत्यनारायण का नया कहानी संग्रह इस पुस्तक मेले में आ रहा है आधार प्रकाशन से. इसकी भूमिका रोहिणी जी ने लिखी है. सत्यनारायण हमारे समय के ना मात्र कहानीकार वरन एक दृष्टा भी है जो गिद्ध की भाँती आनेवाले समय की पहचान करके हमें आगाह करते है और फिर अपने आसपास होनेवाली घटनाओं को आपस में जोड़कर एक तिलिस्म रचते है, यह कहानी संग्रह ऐसी ही कुछ कहानियों का दस्तावेज है जहां वे एक बार फिर से एक नए लोक , प्रतीक और बिम्बों के साथ उपस्थित है, वास्तव में यह नई सदी के शुरू होते दुखद प्रसंगों का जीवंत दस्तावेज भी है जो हमें अंत में एक राह भी दिखाता है और अपने आप को पुरी ईमानदारी से अपने अन्दर झांकने को भी मजबूर करता है. बहरहाल आप देखिये रोहिणी अग्रवाल क्या कहती है इस नए कथा संग्रह के बारे में. 

"लोक -स्मृति में रचे-बसे किस्से आज के उत्तारआधुनिक परिदृश्य में हवा हो गए हैं, जैसे इंसान को परिभाषित करने वाले मूल्य और संवेदनाएं। अपनी ही बेख्याली में खोई नई पीढ़ी नहीं जानती कि सांस्कृतिक चेतना की संवाहक लोक-कथाएं काल की सरहदों से मुक्त कर व्यक्ति के भीतर जीवन का स्पंदन, राग और लय भरती हैं। जानते हैं सत्यनारायण पटेल। इसलिए महानगरीय सभ्यता में आत्म-विस्मृति का जीवन जीते व्यक्ति को जब वे कहानी नहीं, किस्सा सुनाने लगते हैं, तब विज्ञान और तकनीक की भूलभुलैया में हड़बड़ाए 'मानुष' को अनायास अपनी कहन-शक्ति मेे बांध लेते हैं; और फिर सूखी जमीन पर भीतर-भीतर धंसते पानी की तरह उसकी अंतश्चेतना पर सवालिया निशान बना काबिज हो जाते हैं। धर्म, राजनीति तथा प्रशासन की शह पाकर उग्रतर होती अमानवीय व्यवस्थाएं मनुष्य पर थोपी गईं अनिवार्यताएं तब तक हैं जब तक उनका प्रतिकार करने के लिए वह अपनी अंतःशक्तियों को संगठित कर रचनात्मक रूप नहीं देता। 


सत्यनारायण  पटेल 'न्याय' के आमिर की आक्रोशमयी पीड़ा या 'काफिर बिजूका उर्फ इब्लीस' के बिजूका की स्वप्नशीलता को कोई निश्चित सिरा देने का दावा नहीं करते, लेकिन हौले से उनके परिपार्श्व में बंजारा बांध और घट्टी वाली माई की पुलिया बनाने में जुटी संकल्पदृढ़ता और आशावादिता को रख देते हैं। स्याह अंधेरों को अपने हौसलों के बूते चीर देने का विश्वास इस संग्रह की कहानियों की ताकत है जो सबसे पहले अपने भीतर पसरे अंधेरों को चीन्हने की तमीज देता है। शायद इसीलिए बिजूका की तरह अपने मानवीय वजूद का उपहास सहता आम आदमी उनकी कहानियों में क्रमशः निखरता हुआ व्यवस्था की कठमुल्ला ताकतों के लिए पहले काफिर बन जाता है और फिर इब्लीस।


सचमुच  अद्भुत किस्सागो हैं सत्यनारायण पटेल। भीतरी तड़प और प्रश्नाकुलता केा रोचकता का बाना पहना कर लेखक ने कहानी दर कहानी पाठक से अपने वक्त को नई आंख से देखने और नई तरकीब के साथ गढ़ने की अपील की है। भाषा का सृजनात्मक उपयोग और आडंबरहीन ईमानदार कहन-शैली कहानी को अर्थ-व्यंजक भी बनाती है और पाठक को लेखक का राज़दार भी। साझेपन की रचनात्मक आत्मीयता का विस्तार इस संग्रह की विशेषता है और वक्त की मांग भी". 


सत्यनारायण पटेल के कहानी संग्रह का मुख पृष्ठ एवं फ्लैप ।

प्रकाशक: आधार प्रकाशन

लोकार्पण: पुस्तक मेला दिल्ली

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