Skip to main content

"संसार के एक एकांत मे बैठकर बहुत डरते हुए"


आश्वस्त होता हूँ बार - बार
जब भी बाहर जाता हूँ
जेब मे हाथ डालकर देख लेता हूँ कि चाभी
रखी है ना जेब मे, और अपनी
उँगलियों मे घुमाकर छल्ला तसल्ली देता हूँ
अपने आप को कि सब कुछ सुरक्षित है.
अब डर लगता है पता नही कहाँ गिर जाये भरोसा और ईमान
कहाँ छूट जाये सुकून और शान्ति
किसके साथ चल दूँ एक भीड़ मे अनियंत्रित सा
किसके हाथों चढ जाऊं बलि मै जानता नहीं
किसके  हाथों कठपुतली बनकर
नाचने लगूं उन्मादियों की तरह.
सब कुछ तो अनिश्चित सा होने लगा है इन दिनों
यह उम्र का तकाजा है या स्वाभाविक
इस घोर कलुषित होते जा रहे समय मे
बार-बार याद आता है चलते समय कि
दरवाजा ठीक से बंद किया था या नहीं
कुंडी चढाई थी और बाहर वाला दरवाजा ठेला था कि नहीं
आते समय कोई देख तो नहीं रहा था ना मुझे
कि निगाह पलटते ही टूट पड़े सूने घर पर और
लूट के जाये ज़िंदगी भर  का चैन औ सुकून
कैसे जियूँगा इन आख़िरी दिनों मे.
वैसे ही समेटा नहीं कुछ जीवन मे
अलमस्त फ़कीर की भाँती तो जीता रहा
दवाओं के भरोसे और दुआओं पर ज्यादा
पर अब हिम्मत नहीं है कुछ खोने और पाने की.
बस हर बार निकलता हूँ तो बार-बार आश्वस्त
होना चाहता हूँ कि चाभी सुरक्षित है जेब मे
आप भले ही कुछ कहे पर ये आश्वस्ति ही
अब ज़िंदा रखती है कि जब तक
सुरक्षित है चाभियां दुनिया के सभी
तालें सुरक्षित रहेंगे............

- लखनऊ की एक तनहा शाम 25 जुलाई 2013

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही