Skip to main content

तुम्हारे लिए.........सुन रहे हो ...........कहाँ हो तुम.........डफरीन

आखिर कौन है यह शख्स जो मेरे भीतर पाँव पसारे रह रहा है गत पांच माह से .......? आज तक तो मै नहीं समझ पाया.............पर मामला कुछ गंभीर है और अब जवाब देना ही होगा अपने आपको भी .........!!!!!
जिस दिन यह सोच लूंगा कि अपने होने और ना होने से जीवन मे कोई फर्क नहीं पडने वाला उस दिन यह नैराश्य, आसक्ति और त्याग सब खत्म हो जाएगा और वह धुंध जो तुम्हारे होने से मेरे होने को ढक लेती थी, वह भी समेट लूंगा......और फ़िर इस सपाट बियाबान मे से लंबी होती जीवन डोर को समेट कर कही दूर चला जाउंगा देखना फ़िर कभी दौरे नहीं पड़ेंगे इस तरह साँसों के और नहीं होगा उद्दाम भावनाओं का ज्वर....सुन रहे हो..... कहाँ हो तुम........ आज फ़िर याद आ गया वो सब कुछ- जो सिर्फ तुम्हारे होने से ही घटित होता था और आज जब मेरे पास नहीं हो तुम यहाँ सम्पूर्ण भौतिक रूप से तो मै पथरा गया हूँ.......क्या निराश हुआ जाये......?
अब जबकि कुछ बचा ही नहीं है और छठे चौमासे बात करना मानो एक बार फ़िर से अपने आपको भ्रम मे रखना है कि जीवन का शाश्वत रुदन जारी है साँसों के बीच से जीवन की रूठी हुई गाड़ी को ढोते हुए श्मशान तक खींचते हुए ले ही जाना है तो, डफरीन लगता है तुम यही हो कही मेरे आसपास.......एकदम से मेरी मौत की स्तुति गाते हुए और बाट जोहते हुए एक कातर निगाहो से देख रही हो कि मौत के साये मे मै कैसे क्रंदन करूँगा और फ़िर एक काला आसमान छुपा लेगा मेरे भीतर के स्व को जो कभी तुम्हारे होने से बन ही नहीं पाया, घटित ही नहीं हुआ वो सब जो ख़्वाबों मे से छलक छलक जाता था और मै मदहोश होकर बार-बार पी लेता कि इसमे तुम्हारी ही दी हुई मिठास है जो मेरे भीतर की कड़वाहट को निगल गई हो मानो....आज यह क्षण आ गया है और बस...करुणा का विस्तार अपने होने मे सम्पूर्णता चाहता है और मै दूर जा रहा हूँ कही ....तुम हो ना यही मुस्कुराते हुए मेरी ओर ...................इस देह धरे के दंड का भेद जानकार चली जाना कही और, कही दूर....... उन नक्षत्रों के पार जो कही से सनातनी परम्परा का निर्वाह कर सके......जिस दिन मैं अपने अकेलेपन का सामना कर पाऊँगा – बिना किसी आशा के- ठीक तब मेरे लिए आशा होगी, कि मैं अकेलेपन में जी सकूँ............

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही