Skip to main content

लेखक एक पुलिस वाले के पीछे चापलूस की तरह दौड़ रहा है- उदय प्रकाश



  • Uday Prakash कहते है,

    रोम्यां रोला कहते हैं, ऑथोरिटी शब्द ऑथर से बना है। जो भाषा पर अधिकार रखता था, वह ऑथर था। क्राइस्ट, प्रोफेट मोहम्मद, वेद व्यास ऐसे ही लोग थे। लेकिन जब प्रिंट आया तो भाषा पर बहुतों का कब्ज़ा हो गया वकील, नेता, डॉक्टर सबका। यही वह वक्त था, जब ऑथर की जगह राइटर ने ले ली। ऑथर और राइटर में फर्क है। ऑथर बोलता था और राइटर लिखता था। यह मुश्किल काम था, इसलिए ऑथर का इतना सम्मान था। आप अपने यहाँ देखिए, गांधी और टैगोर को एक ही धरातल पर रखा जाता था। आज क्या स्थिति है, लेखक एक पुलिस वाले के पीछे चापलूस की तरह दौड़ रहा है। आप जिन्हें हिंदी के बड़े आलोचक कहते हैं, वे छोटी-छोटी चीजों पर बीक जाने वाले लोग हैं। वे किसी को प्रेमचंद, मुक्तिबोध या टैगोर कह सकते हैं। लेखक की अथॉरिटी नहीं रही।

    'इक कविता जिसका अनुवाद करें तो कहती है, शब्दों को बबलगम की तरह फुलाया जा रहा है। खुबसूरत एंकर शब्दों को चबाती है, और राजनेता उनसे दांत माजते हैं। और कुल्ला करते हैं। मॉस मीडिया झूठ का कारोबार है। वह सच को दिखाने का नही, सच को छिपाने का काम करता है। आप सुधीर चौधरी का मामला देखिए या नीरा राडिया का। यह सारा काम भाषा के जरिए ही तो हो रहा है। मीडिया को लेकर किसी को कोई ग़लतफ़हमी नहीं है। ''

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही