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मिथिलेश राय की एक प्रभावी कविता "हम ही है"

 

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Mithilesh Ray की एक प्रभावी कविता. अच्छी बात यह है इस युवा कवि से मेरा बहुत पुराना परिचय है और इसी ने संभवतः मेरा नाम आज से पन्द्रह साल पहले चाचू रखा था, बचपन में इसकी कवितायें हमने चकमक में छापी है लगातार.........एक बार दिल्ली में मुझसे मिलने आया था, आजकल यह प्रभात खबर में संपादन डेस्क पर है और उम्दा काम कर रहा है. बधाई मिथिलेश कि यहाँ -वहाँ छप रहे हो......अब किताब की तैयारी करो. Ashok Kumar Pandey विश्वविद्यालय से असुविधा मिल ही चुकी है बस अब किताब ही आना चाहिए.......बहरहाल...बधाई....
"हम ही है"

हम ही तोडते हैं सांप के विष दंत


हम ही लडते हैं सांढ से
खदेडते हैं उसे खेत से बाहर

सूर्य के साथ-साथ हम ही चलते हैं

खेत को अगोरते हुये
निहारते हैं चांद को रात भर हम ही
हम ही बैल के साथ पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं
नंगे पैर चलते हैं हम ही अंगारों पर
हम ही रस्सी पर नाचते हैं

देवताओं को पानी पिलाते हैं हम ही

हम ही खिलाते हैं उन्हें पुष्प, अक्षत
चंदन हम ही लगाते हैं उनके ललाट पर

हम कौन हैं कि करते रहते हैं

सबकुछ सबके लिये
और मारे जाते हैं
विजेता चाहे जो बने हो
लेकिन लडाई में जिन सिरों को काटा गया तरबूजे की तरह
वे हमारे ही सिर हैं
परिचय 
24 अक्टूबर,1982 ई0 को बिहार राज्य के सुपौल जिले के छातापुर प्रखण्ड के लालपुर गांव में जन्म । वागर्थ, परिकथा, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कादंबिनी, साहित्य अमृत, बया, जनपथ, विपाशा आदि में अबतक बीस-पच्चीस कविताएं प्रकाशित। गद्य साहित्य में भी लेखन। बाल साहित्य में भी सक्रिय। गद्य व पद्य के लिए क्रमषः वागर्थ व साहित्य अमृत द्वारा युवा प्रेरणा पुरस्कार। कहानी कनिया पुतरा व् स्वर टन पर डाकूमेंट्री फिल्म बनने कि तैयारी , आजकल  प्रभात खबर में संपादन डेस्क पर। 
संपर्क-द्वारा, श्री गोपीकान्त मिश्र,जिलास्कूल,सहरसा-852201, (बिहार) 
मोबाइल-09473050546
 

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