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राजस्थान के कथाकार चरण सिंह पथिक और अपनी उजबक की तरह आदत




कल रात राजस्थान के कथाकार चरण सिंह पथिक को सत्यनारायण देवास लेकर आया था, जो यहाँ तीन चार दिन रहेंगे, रात में उनसे डा प्रकाशकांत जी के यहाँ खूब गप्प की और समझा की हिन्दी कहानी में खासकरके ग्रामीण पृष्ठ भूमि की कहानियों के सामने क्या चुनौतियां है . बात ही बात में मैंने एक सवाल पूछा की यदि बूढ़ी काकी, चीफ की दावत , बूढ़े का उत्सव और पीली छतरी जैसी कहानियों को आज के सन्दर्भ में ग्रामीण चरित्र या आंचल
िक बातों के परिपेक्ष्य में आंका जाए तो क्या निकलेगा.....और क्या आज का कथाकार क्या उसी नजरिये से ग्राम जीवन को देखता है जो प्रेमचंद देखते थे .......या आज की अधिकाँश कहानियों में दलित, वंचित और उपेक्षित लोग काफी आ रहे है जैसे सत्यनारायण की कहानी में पर आज भी गाँव की आधे से ज्यादा बातें छूट रही है , तरुण भटनागर की कहानी का भी जिक्र हुआ और विनोद कुमार शुक्ल का भी जो एक नए तरह के फ्रेमवर्क लेकर आते है पर क्या इनमे भी सम्पूर्ण ग्राम जीवन है.....................सवाल तो बहुत है बस सिलसिलेवार इमानदारी से जवाब खोजने वाला चाहिए.....चर्चा में बहादुर पटेल, दिनेश पटेल, सत्यनारायण, प्रकाशकांत जी, सुनील चतुर्वेदी, मनीष वैद्य , चरण सिंह पथिक शामिल थे, और अपनी तो आदत है ही की उजबक की तरह से सवाल पूछे जाए........

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