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बैतुल की दुर्गा को सलाम



बैतुल से लौट ही रहा था कि स्टेशन पर एक युवा लडकी को ढेर सारा सामान ढोते हुए देखा तों हैरत में पड़ गया मैंने उसे पास बुलाया और पूछा कि क्या मै दो मिनिट बात कर सकता हूँ और तस्वीर ले सकता हूँ तों बहुत जोश और खुशी से बोली ...जी, जरुर, मेरा नाम दुर्गा है, पिताजी के किसी घटना में पाँव खराब हो गये, घर में सात भाई-बहन है और कमाने वाला कोई नहीं, सो, मैंने यह कूली काम ले लिया  और अब बैतुल स्टेशन पर काम करती हूँ. अपनी उम्र इक्कीस बरस बताते हुए थोड़ा अचकचा गई वो दुर्गा. दसवी में फेल हो गई थी साहब सो पढना छोड़ दिया, अब घर में काम करना पडता है पर दस साल बाद मै ऐसी नहीं रहूंगी, ओपन से पढ़ रही हूँ और जल्दी ही सब पढाई पूरी करके अच्छा काम करूंगी, स्टेशन पर सब मदद करते है, कोई छेडछाड नहीं करता, यात्री भी जो मांगती हूँ -दे देते है. हाँ पर आप मुझे कमजोर ना समझे- मै पैंसठ से सत्तर किलो तक का बोझ उठा लेती हूँ मै किसी मर्द कूली से कम नहीं हूँ. सुबह आठ बजे आती हूँ देर रात नौ बजे तक रहती हूँ- स्टेशन मेरा घर है साहब. आप क्या कह रहे है लाडली लक्ष्मी योजना........अरे साहब वो तों इक्कीस साल पूरा होने पर लडकी को देगी सरकार कुछ रूपया पर जब वो पढ़ लेगी तों सरकार के रूपये क्यों लेगी क्या लडकी में स्वाभिमान नहीं होता है.? पर इक्कीस साल तक वो क्या करेगी...और जब घर में ऐसी स्थिति हो तों सरकार के पास हमारे लिए कोई योजना है.....ये सवाल मेरे लिए अनुत्तरित था. पर बस सलाम करके लौट आ गया मै.. ट्रेन आ रही थी दुर्गा........और मेरा सफर शुरू हो रहा था बस तुम्हारे हौसले और जज्बे की मै कद्र करता हूँ सात भाई-बहन, माँ - बाप और तुम्हारी हिम्मत निश्चित ही काबिले तारीफ है और तुम्हारे सवाल हम सबके मुँह पर एक बड़ा तमाचा है. हम जो महिला सशक्तिकरण के लिए काम करते है और महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते है. पर तुम्हे हमारी जरुरत नहीं है क्योकि तुम वास्तव में दुर्गा हो ....दुर्गा.......जिसका उत्सव अब चंद दिनों में शुरू होने वाला है.

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