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प्रशासन पुराण 58

जिले से दूर करीब डेढ़ सौ किलोमीटर एक ब्लाक  था जहां सारे जिले के अधिकारी अपने अपने वाहनों से इकट्ठा हुए थे, क्योकि इसी ससुरे पिछड़े ब्लाक में जिले का एक मेला होना था जिससे समाज के अंतिम आदमी का उत्थान हो सकता था. साले, गरीबों, नंगों, भूखों  को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाना था. एक तों सुबह सुबह घर से निकलना और इन घटिया सडकों पर सरकारी गाड़ी से यात्रा करना बड़ा मुश्किल है साहब इन दिनों........ये कलेक्टर को क्या सूझी कि यहाँ मीटिंग रख दी, साला यहाँ इस मेले में सब बाँट देंगे तों अपना माल कैसे मिलेगा आदि जैसे डायलाग  हवा में उछल रहे थे, फ़िर लालबत्ती आ गई. बैठक शुरू सबकी बोलती बंद........हाँ तों पार्किंग की क्या व्यवस्था है अफसर ने पूछा ......जी सर वो स्कूल में बोल दिया है, और मेले में टेबल की क्या व्यवस्था है..........फ़िर सवाल उछला...........जी वो सब पटवारी मिलकर टेंट वाले से लगवा देंगे और पानी का टैंकर भी खडा रहेगा छोटा अफसर बोला..........जितना पूछा जाये उतना बोलो,  ज्यादा मत  बोलो समझे, औकात में रहो अपनी.....जी साब!!! फ़िर बड़ा साब बोला सूबे का सबसे बड़ा नेता आ रहा है, कितने विकलांगों को सायकिल बटेगी.........जी १२६, देखना कोई पहिया स्टेज पर निकल ना जाये पिछली बार का याद है ना डी डी पंचायत.......जी साब मै खुद कास दूंगा सारे पहिये.......गुड- बड़ा साब बोला, और क्रेडिट कार्ड कितने बटेंगे .........जी ४५२, विधवा पेंशन........जी २३४.......हाँ, देखना कोई महिला जब स्टेज पर चढ़े तों कोई दरख्वास्त ना हो उसके हाथों में वरना जिस विभाग की शिकायत होगी उसे मै छोडूंगा नहीं समझे सब.........जी. और सारी महिलाए ठीक से पांव पड़े, सर पर प्रापर घूंघट रहे सबके और सादिया एक समान  रहे सभी विधवाओं की....महिला बाल विकास ध्यान रहे इस बात का. और  हाँ, सी ई ओ जनपद,  भोजन का मेनू बताईये.......और किसी गरीब के घर बनवा सकते है, वही खा लेंगे सब इकट्ठा पर सफाई का ध्यान रहे.......... पी आर ओ, इसका प्रचार-प्रसार ठीक से समझे "ठीक से" चबाकर कहा था बड़े साब ने........जी, एक मिमियाती से आवाज आई.
अरे हाँ इस मेले में लोग आयेंगे कैसे...............भीड़ होना चाहिए कम से कम पचास हजार लोग, राजधानी से भी मीडिया आरहा है और एकाध नॅशनल चेनल भी शायद कव्हर कर ले.......साब आ जायेंगे......एस डी ओ पुलिस यहाँ है इन्हें कह दिया है और फ़िर सारे सचिवों को भी चमका दिया है कि गाँव में जिसके पास ट्रेक्टर है उन्हें जब्त कर लों और उस दिन सुबह से भर लाना और साहब खाना भी वे खुद लायेंगे अपना.......बड़े साहब ने परिवीक्षा आय ए एस को देखा जों एस डी एम के चार्ज में था. फ़िर दोनों ने कुछ कानाफूसी की और मीटिंग खत्म हो गई. बड़ा अफसर चला गया फ़िर छोटे ने पेलना शुरू किया कि कहाँ, क्या, कैसे होगा.....सारे बाकी अधिकारी चिंता में थे कि चार बज गये है, अभी दो घंटो सफर करना है, घर पहुँचना है और फ़िर रात को साली आज दारु भी खत्म हो गई है क्यों....भैया आबकारी वाले साब, घर भिजवा दोगे क्या.........ये साला लोगबाग गरीब क्यों होते है, ये आदिवासी इतनी दूर क्यों रहते है जिला मुख्यालय से, और इनको सालों को सब सुविधा शासन क्यों दे रहा है, हमारी तों फट जाती है ना यहाँ तक आने में......चालीस पचास गाडियां धूल उड़ाते हुए चली जा रही है.......गाँव के स्कूल में घंटी बज चुकी है, बच्चे भाग रहे है, डर रहे है- काफिले को देखकर, ताली बजा रहे है- फटे कपड़ों में अर्ध नग्न भारत का भविष्य अपने भाग्य विधाताओं को मस्ती से निहार रहा है. आज उनके ब्लाक में पहली बार पचास गाडियां धूल उड़ाकर गई है शायद आजादी के बाद यह सड़क सूबे के सरदार के आने के कारण कुछ हद तक ही सुधर जाये ताकि किसी रमुआ की बीबी की जचकी के लिए ले जाते वक्त बैलगाड़ी में मृत्यु ना हो (प्रशासन पुराण 58)

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