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प्रशासन पुराण 54

और लों आज म प्र में तबादलों की आख़िरी तारीख थी15 जुलाई 2012  ...........सो खत्म हो गया है समय, नेट पर लोग बाग देख रहे है कि जो सेटिंग हुई थी जितना "लिया-दिया" था उसके सकारात्मक परिणाम निकले या नहीं..............अभी एक दोस्त से बातें हुई उसका तो मामला निपट गया, सो मैंने जम के बधाई दे दी और भोपाल जाने पर एक शानदार पार्टी  अपने नाम बुक कर ली है, मामला ले देके निपट गया और वो वहाँ पहुँच गया -जहां जाने की हसरत लिए पिछले बाईस बरसों से जी रहा था, हाँ इस बार भाव थोड़े नहीं बहुत ज्यादा थे. साला मानसून नहीं आ रहा और बाजार में सब्जी  भी महंगी हो गयी, पेट्रोल महँगा, चुनाव सामने है, फ़िर अब जब पूरी दुनिया में रूपये का अवमूल्यन हुआ है तो सबकी इच्छाएं है कि उनका साला कुछ नहीं तो बेंक बेलेंस बढ़ जाये और फ़िर साले ये प्रोफ़ेसर, मास्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, सहायक यंत्री, राजस्व निरीक्षक, पटवारी, एस डी एम, डिप्टी कलेक्टर, डाक्टर, नर्से, पंचायत सचिव यानी कुल मिलाकर ये जमीनी अमला साला कौन सा दूध का धुला है??? देखो ना अभी अभी खनिज में साले ठेकेदार जैसे दो कौडी लोगों ने जम के मूँड दिया सरकार को भी, तो हम तो सरकारी लोग है, सत्ता में है,  ये जमीनी कर्मचारी  जनता से जम के वसूलते है या मुफ्तखोर है ससुरे, हराम की खाते है सो डेढ़ दो लाख ले भी लिया तो कौन सा पाप हो गया अब कम से कम तीन साल तो अपने बीबी बच्चों के साथ सुख से रह लेंगे. अगली अगला जाने, चाहे सरकार हो या मंत्री का पी ए या सचिव हो हमारी महान भारतीय प्रशासन सेवा का बड़ा सांप (सॉरी बड़ा साहब) पद पे कौन रहेगा भगवान भी नहीं जानता.........अपुन ने तो भैया ले दे के सबका भला कर दिया बिछुड़ों को मिला दिया बस एक ही दिल में हमेशा कसक रहती है ये साले तबादले साल भर क्यों नही हो सकते ............( प्रशासन पुराण 54)

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