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Satya Patel की जय हो......

बांदा के बुद्धिजीवियों कलाप्रेमियो ने शबरी नाम से एक संस्था का गठन
किया है. यह समिति साहित्य, संस्कृति,समाज व राजनीति में जनता के गरीब व
वंचित हिस्सों की दावेदारी और संघर्षो का बढ़ावा देने का काम करती है.यह
समिति खास तौर पर ग्रामीण इलाको में रहने वाले खेती-किसानी व मजदूरी पर
निर्भर जनसमुदाय के बीच लोकतान्त्रिक समतामूलक धर्मनिरपेक्ष समाज के
निर्णय के लिए प्रयासरत व्यक्तियों व समूहों के साथ अंतर्क्रिया का मंच
प्रदान करती है.यह समिति महिलाओ बाल श्रमिको और वरिष्ट नागरिको के प्रति
होने वाले अन्यायों का प्रतिकार और उनके स्वाभिमान पूर्वक जीने के लिए
वाजिब संघर्षो का समर्थन करती है.यह समिति प्रतिवर्ष महान कथाकार
प्रेमचंद की स्मृति में कथा लेखन के लिए रूपए 15000/ का प्रतिवर्ष सम्मान
देती है. यह समिति अपने उपरोक्त अभियान के लिए किसी तरह की कोई सरकारी मदद
नहीं लेती है. प्रतिवर्ष समिति अपनी स्थानीय जनता की मदद से ही सारे
आयोजन करती है. इस वर्ष यह पुरस्कार इंदौर के युवा कथाकार सत्यनारायण पटेल को दिया गया है, बधाई हो सत्तू महाराज तुम्हे भी और तुम्हारे कहानी संग्रह "लाल छींट वाले लुगडी का सपना " को भी जिसकी बदौलत तुम्हे यह पुरस्कार मिला वाह रे मालवा की माटी के शेर.....!!!!!!Satya Patel की जय हो......

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही