Skip to main content

एक प्यारी सी संवेदनशील लड़की आभा मोंढे

आज लगभग ३२ बरसो के बाद जर्मनी के एक परिवार की याद आई जब मैंने उन दो नन्हे मुन्ने बच्चो को देखा था जिन्हें अंगरेजी के अलावा कुछ नहीं आता था आज एक संपर्क बना तो अपनी याददाश्त पर ताज्जुब हुआ, गर्व भी महसूस हुआ और एक नया संपर्क बना ठेठ जर्मनी से और एक प्यारी सी संवेदनशील लड़की मिली जो बढ़िया लिखती ही नहीं बल्कि मुझे दादा कहकर भी नाता जोड़ बैठी स्वागत है तुम्हारा Abha Nivsarkar Mondhe, World is small and round

वो नारायण मोंढे के बेटे थे जो आज जर्मनी में है और खूब पेंटिंग करते है। आभा पहले बड़े बेटे की पत्नी है और
यूही स्वरांगी के ब्लॉग पर देखा तो याददाश्त पर कुछ उभरा और फ़िर मेंसे उत्सुकतावश उससे पूछ लिया और बात सही निकली उसने बहुत सहजता और सरलता से सब बताया और एक प्यारे से संबोधन से कहा कि दादा में बड़े वाले की पत्नी हूँ............. कितना अच्छा लगा यह बयान नहीं कर सकता में........आभा आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है मेरे लिए कि तुमने मेरे दिमाग को फ़िर से यह जता दिया कि मेरी याददाश्त अनूठी है और मेरे दोस्त जो मुझे गूगल कहते है गलत नहीं कहते..............
शुक्रिया आभा और दादा शब्द का मतलब में जानता हूँ और इस शब्द की में इज्जत करता हूँ यह वादा है मेरा.........
ढेर सारे शुभामनाएं है तुम दोनों के लिए आने पर जरूर मिलना............

संस्नेह......
दादा.......

https://www.facebook.com/amondhe

Comments

Abha M said…
अब मैं क्या कहूं.. दादा... बहुत धन्यवाद.. कहूंगी तो भी औपचारिक होगा और नहीं कहूंगी तो मन नहीं मानेगा.. मैं हमेशा से मानती आई हूं और पिछले दिनों मेरा यह मत पुष्ट होता गया कि कोई भी व्यक्ति आपके जीवन में किसी कारण से आता है.. लागे बांधे किसी कारण से बनते हैं.. बस आपका स्वागत हमारे जीवन में. जरूर आएंगे जब हम इंदौर आएंगे तो देवास भी आएंगे

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही