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ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां।


कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान, न लेहो काहे लगाये छतियां।।


शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़ वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह।


यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं।


चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह।


बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर कि दाद मारा, गरीब खुसरौ।


The translation is

o not overlook my misery by blandishing your eyes, and weaving tales/ My patience has over-brimmed, O sweetheart, why do you not take me to your bosom./ Long like curls in the night of separation, short like life on the day of our union; / Suddenly, using a thousand tricks, the enchanting eyes robbed me of my tranquil mind;/ Tossed and bewildered, like a flickering candle, I roam about in the fire of love;/In honour of the day I meet my beloved who has lured me so long, O Khusro.

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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