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दिनेश की कविता और सारा जमाना

पिछले दिनों में हरदा गया था वहां धर्मेन्द्र ने कहा की यार तेरे दोस्त दिनेश ने अदभुत कविता लिखी है और वो कविता वागर्थ में छपी है उस कविता की एक लाइन धर्मेन्द्र ने सुनाई तो मन उसी कविता को पढने को व्याकुल हो उठा । खूब ढूंढा यहाँ वहा पर कविता का कोई ठिकाना ही नही था । आखिर एक दिन पछले शनिवार को जयपुर से विवेक आया था सो उसे भारत भवन दिखाना ही था वहां चला गया सबसे पहले पुस्तकालय पर धावा बोला और वागर्थ देखा फ़िर पुस्तकालय कर्मचारी की चिरौरी करना पड़ी की भैय्या वागर्थ का अंक निकाल दे .............
बड़ी देर तक मिन्नतें करने के बाद वो तैयार हुआ फ़िर वागर्थ का अंक निकला और मैंने पढ़ी दिनेश की कविता।

तुरंत बाहर निकाल कर दिनेश को फ़ोन किया की बॉस क्या अदभुत कविता है दिनेश दिल्ली निकालने की तैय्यारी में था उस सज्जन पुरूष ने कहा की में अभी पुरी दुरुस्त कविता तुम्हे भिजवा देता हूँ उस कविता में मैंने कुछ रद्दो बदल किए है उसे भी देख लेना और यदि तुम्हारा कोई ब्लॉग हो तो उस पर डाल देना। दिनेश को बहुत सालो से जानता हूँ इतना सहज कवि मैंने कभी नही देखा जब भी रेवा जाता था में दिनेश से मिलकर आता था और बघेलखंडी बोली की हम बाते करते थे फ़ोन पर तो ढेरो बाते हो ही जाती है।
आज अचानक दिनेश की कविता मिली तो मुझे इस कवि से प्यार हो गया की साला इतना अच्छा दोस्त है और सहज है की इस बिगड़ती दुनिया में ऐसे आदमी मिलना ही मुश्किल है .......
खैर आप भी पढ़िए इस अदभुत कविता की एक मिसाल और एक कवि का ईमानदार बयान........
" आज भी खुला है
अपना घर फूंकने का विकल्प..."

उम्र का पहला पड़ाव
जिसे पहले प्यार की उम्र भी कहते है
मैंने सब कुछ छोड़कर किया प्यार
और लिखी कविता
उन दिनों प्यार ही
जीवन की पहली प्राथमिकता थी
कविता उसकी क्षतिपूर्ति
ये तो बाद में पता चला कि
इस ससुरी कविता से
जब न चोला बन सकता है न चोली
तो आप ही बताएं मैं इसका क्या करूँ ?
जब चोली से भेंट हुई तो ,
चोला ऐसा मगन हुआ कि
चोरो के गिरोह में शामिल होने की
अर्जी देने लगा
सर पर लादकर नून -तेल लकड़ी
अपने को ईमानदार चोर घोषित करता हुआ
जब किसी तरह शामिल हुआ चोर बाजार में
तो चोली की अपनी शर्ते थी
और चोले की अपनी सीमा
तब जाकर पता चला कि सुर या तुलसीदास मुझसे
अधिक ' कुटिल-खल-कामी' नही रहे होंगे
अवसर मिलता तो 'सब पतितन को टिको' हो जाता
हो सकता है कुम्भनदास फतेहपुर सीकरी से
बैरंग लौटा दिए हो
अराजक करार देकर ।

बहरहाल
मेरी 'पनहिया' कई बार टूटी
पैरो में लुढ़ककर आ गिरी पगड़ी
कई बार
पर मैंने नही लिखी
आत्मालोचन कि वैसी कवितायें ।





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