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एक संभावनाशील प्रशासनिक अधिकारी की असमय मौत यानि कि एक सपने का खत्म हो जाना

आज ही दिल्ली से लौटा हू दिल्ली के तीन दिन बेहद थकाऊ थे, ना मात्र काम के हिसाब से, बल्कि सूअर बुखार और चिपचिपी गर्मी के कारण , ये तीन दिन मेरे लिए बहुत ही उबाऊ थे । एक साक्षात्कार के सन्दर्भ में राजीव गाँधी फाउंडेशन दिल्ली में गया था । पद चूकि बहुत आकर्षक था इसलिए चला गया था । वह पहाड़गंज के एक होटल में रुका था हालांकि एसी लगा था फ़िर भी गर्मी इतनी खतरनाक थी कि बताया नही जा सकता मेरे चेहरे पर निशान पड़ गए। साक्षात्कार में दो दिन की प्रक्रिया थी चयन होने की पुरी उम्मीद है पर मामला रुपयों पर आकर रुकेगा वैसे भी दिल्ली के हालात देखकर मुझमे हिम्मत नही है की मै वहा जाऊ और काम करू । पता नही क्या होगा , हां यदि आठ लाख का पैकेज मिला तो हिम्मत जुटाई जा सकती है क्योकि मेरा मानना है कि पैसा छठी इन्द्री है जो पाँच इन्द्रियों को नियंत्रित करता है , खैर जो होगा देखेंगे.....

इस बीच मोहित का फ़ोन आना दिल्ली में सबसे सुखद था ,"बिल्कुल रेगिस्तान में पानी मिलने के जैसा" । उस दिन १० तारीख को जब मै लौटने ही वाला था कि उसका फ़ोन आ गया। मैंने कुछ पूछा नही सिर्फ़ पूछा कि कैसे हो बेटू । फ़िर वो बोला क्या हो रहा है कैसा चल रहा है और क्या नया मैंने बताया कि दिल्ली मै हूँ और बस रात मै बात करता हूँ। उसने बताया कि वह १४ तारीख को नही मिल पायेगा क्योकि चाचाजी के साथ वो मुंबई जा रहा है पता नही कब आना होगा और कब मिलना । ऐसा लगा कि आवाज कही दूर से आ रही हो गहरे कुए से और कही से भटकती हुई ......... पता नही क्यो में बैचैन हो उठा था , पर कुछ नही पूछा , बस हूँ हाँ करता रहा, हाँ मैंने कहा कि मुझे खून चाहिए और जाने के पहले दे जा ...... उसने हाँ कहा और बस ये कहा कि अपना ध्यान रखना मैंने कहा कि दिल्ली में अगर चयन हो गया तो मेरे साथ कौन रहेगा तो बोला घर वाले ये सब कहा समझते है में अपने चाचा के पास जा रहा हूँ ताकि उनके साथ ठेकेदारी में हाथ बटा सकू काम तो करना ही है ना सेम ???

वो एक बेहद संभावनाशील व्यक्ति है और उसमे जिस तरह की संभावनाए है , उससे इनकार नही किया जा सकता । मैंने बचपन से उसमे एक प्रशासनिक अधिकारी की छबि देखी थी और उस संभावना को लेकर में अभी तक जिन्दा था । में यह मानता हूँ कि दुसरो से वो उम्मीदे रखना बेकार है जो हम ख़ुद अपने आप से पुरी नही कर पाए ,पर , क्या करता मैंने उसे बचपन से वो ख्वाब दिखाया और उसे ख़ुद भी देखता रहा । आई आई टी के पुरे साढे चार साल तक हम दोनों यही ख्वाब देखते रहे और उसने खूब तैय्यारी भी इसमे कोई शक नही है पर क्या हो गया नही पता पर उस दिन सचिन ने बताया कि परिणाम आ गए है तो मैंने पुनीत से रोल नम्बर पूछा और देखा तो पाया कि चयन नही हुआ है बस एकदम से निरुत्साहित हो गया और सारा उत्साह ही मानो खत्म हो गया फ़िर रात में मोहित का फ़ोन आया तो मैंने कह दिया कि नही हुआ है बस ४-५ दिन बातचीत बंद रही सारे दोस्त मुझसे पूछ रहे थे अमितोष , सचिन, अनूप और भी सब............. उसने किसी का फ़ोन नही उठाया बस शांत रहा और आखिरी में समर्पण कर दिया कि अब जो चाहो जो कर लो में तैयार हूँ और घर वाले उसे अब मुंबई ले जा रहे है...............

रुक जाओ मोहित और इम्रे साथ दिल्ली चलो हम फ़िर से सब शुरू करेंगे बेटू और फ़िर अगले साल तुम वहा दमकोगे पर थोडी सी ज्यादा मेहनत और एक खवाब एक सार्थक जिंदगी तुम्हारा रास्ता देख रहा है ...................... रुक जाओ मोहित और ना मेरे लिए ना किसी के लिए अपने आप के लिए अपनी प्रतिभा के लिए थोडी सी मेहनत कर लो और थोड़े समय बाद सब ठीक हो जाएगा और मेरे साथ दिल्ली चलो मुझे भी जरुरत है........ अपूर्व को नौकरी करना ही पड़ेगी में अकेला नही रह सकता उस बेरुखे शहर में............ तुम्हारे सारे दोस्त भी यही सोचते है हम सब तुम्हे वहा ........... शिखर पर देखना चाहते है मोहित................ रुक जाओ मोहित............

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