जिसने मंगलसूत्र की इज्जत नही रखी और सब कुछ छीन लिया वो मंगलसूत्र के नाम पर महिलाओं को बरगला रहा है अपनी बूढ़ी माँ की निजता छीन ली और हर बार मीडिया के सामने बात की शर्म कर रे बाबा थोड़ी, सत्ता और प्रचार के भूखे नोटबन्दी करके महिलाओं की बचत और देश के गरीब का रुपया छीन लिया और शर्म नही देश की रेल से लेकर हवाई सेवाएं बेच दी फिर भी पेट नही भरा तुम भ्रष्ट लोगों का कांग्रेस को बदनाम कर रहा और यह तो सीख ले कि कांग्रेस ने 55 साल शासन किया है, 70 कब से हो गए , ढंग से स्कूल ही पढ़ लेता रे बाबू सुधर जा, बुढ़ापा बहुत खराब होता है बाबू, आडवाणी को देख, पपू को देख [ कॉपी पेस्ट चोरी करने वाले सावधान रहें ] *** सुनते रहिए, गुनगुनाते रहिए बस मैनू विदा करो मैनू विदा करो जी अब विदा करो मेरे यारा मैनू विदा करो मैनू विदा करो जी मैंने जाना है उस पार तुम सभी साफ सही हूं मटमैला मैं तुम सभी पाक मगर पाप का दरिया मैं मैनू विदा करो मैनू विदा करो जी अब विदा करो मेरे यार झूठ भला क्यों बोलोगे तुम सब सच कहते हो मेरी नहीं है दुनिया जिसमें तुम सब रहते हो अब विदा करो मेरे यार मेरे सर पे सारी तोहमत तुम धर देना मैं तो मैं हू
|| भाठ की मिट्टी से उसकी पीठ बना एक टीला || कभी-कभी इस वायवीय दुनिया में ऐसा लगता है कि यह वायवीयता कुछ नहीं बल्कि हम मनमिलें मित्र और एक तरह की रूची रखने वाले अब ऐसे सघन जुड़े है जैसे कोई रिश्ते हो या सहोदर हो. युवाओं में हिंदी के प्रति अगाध प्रेम और लिखने - पढ़ने की जद्दोजहद काबिले तारीफ़ है, तमाम तकनीक और रंजकता के साधन और संसाधन उपलब्ध होने के बाद कोई इस विषम समय और दारूण परिस्थिति में लिख रहा है और रच रहा है तो वह निश्चित ही बधाई का पात्र है. खासकरके कोई युवा मित्र यदि एक बेजान हो चुके मशीनीकृत शहर में नौकरी करके दौड़ते-भागते हुए, समय को साधकर अपनी टेबल पर पहुंचता है और फिर काम के तनाव, व्यवसायिक होड़, प्रेम के अनुभवों, अवसादों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच सृजनरत है, तो यह आज के समय की अनूठी बात ही होगी और मेरे लिए यह सब स्तुत्य है और सराहनीय भी. मैंने पहले भी कहा है कि इतर भाषाओं और अंतर आनुषंगिक विषयों से आने वाले लोगों ने जो भी काम हिंदी में किया है वह अनुकरणीय है. हालांकि लिखना किसी के लिए भड़ास हो सकता है और फिर कविता लिखना तो सबसे सरल और सहज काम है जो तकनीक ने इतना आसन कर द