अभी Mahesh Kumar ने एक पोस्ट में दलित पितृसत्ता का इस्तेमाल किया जब पूछा कि ये क्या है तो जवाब दिया कि "जैसे ब्राह्मण पितृसत्ता होती है वैसे ही दलित पितृसत्ता होती है" हिंदी के युवा तुर्क जो ना करें कम है, मतलब कुछ भी, मैं बच्चा नही कि समझ ना सकूँ, इसका शाब्दिक अर्थ तो समझ गया पर इसके दीगर मायने, ख़ैर, हिंदी वाले इतना शब्दों का अर्थ और खिलवाड़ करते है कि सब गुड़ गोबर हो जाता है, यह जातिवादी लड़ाई को आगे बढाने का एक और बकवास मुद्दा है आजकल यह सब रिवायत हो गया है और जल्दी हासिल करने के लिये कुछ भी करना फैशन और हिंदी के शोधार्थी इसमें माहिर है किसी और सन्दर्भ में फर्जी कवियों और तथाकथित लेखकों की ओर इशारा है मेरा, साथ ही बेरोजगार शोधार्थियों की ओर भी जो अपनी अयोग्यता को साहित्यिक मजमे से ढाँकने की कोशिश कर रहे है, और सवर्णों को गाली देकर नौकरी पाने का उजबक तरीके खोज रहे है, देश के श्रेष्ठ विवि में सरकारी रुपयों से पढ़कर और तमाम तरह की सुविधाएँ लेकर जब नौकरी के जंगे मैदान में उतरे तो समझ आया कि अब कार्ड नही चलेगा तो लगे पत्ते फेंटने काश कि कमला भसीन होती तो वो बताती इन्हें कि पितृसत
लोमड़ी के प्रमेय - 3 लोमड़ी के रूप में जन्म लेना ही अपने आपमें जीवन में सफलता का मंत्र है, लोमड़ी योनि में अर्थात ही धूर्त, चतुर, मक्कार, लोभी, उच्च महत्वकांक्षाएं, इस्तेमाल करने का हुनर, अपने को सीढ़ी बनाकर हवाई जहाज में उड़ने का स्वप्न, और दुनिया को बेवकूफ़ समझकर गधे साधना गधों की अपनी दुनिया है, वे पैदा ही होते है कि लोमड़ियों के सुसंगत जाल में फँसकर अपना जीवन सेवा करते हुए बीता सकें और सबके बोझ के साथ लोमड़ी के स्नेहिल बोझ तले अपनी कुंठाएँ, अवसाद और कभी ना पूरे न हो सकने वाले सपनों की उम्मीद में लोमड़ी भक्त बनकर जीवन का सर्वस्व न्यौछावर कर सकें चुनाव हर कदम पर है जीवन से लेकर मरण में , एक बार जन्म लेने पर हरेक कदम पर चुनाव है और इसमें कुछ गलत भी नही है, पर जब यह सुविधा, नाम, यश और कीर्ति के सम्बन्ध में हो तो लोमड़ी से भला बेहतर इस घटियापन को कौन समझा और अपना सकता है और वह जब गधों का चुनाव पूरे होशोहवास में करती है तो क्या कहने फिर लोमड़ी और गधे के अमर प्रेम की किवदंती अमर है और जब तक यह संसार है तब तक लोमड़ियां गधों का इस्तेमाल करके राज करती रहेंगी चाहे फिर वो सारे संसार में फूट डालकर शेर, ह